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निज दोष
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सेतू तो कुछ भी नहीं कर रहा है।' किसी दिन पैर दुःखने लगे तो कहेगा, ‘मैं क्या करूँ?' प्रकृति जबरन करवाती है और कहता है कि 'मैंने किया !' और इसलिए ही तो वह अगले जन्म के बीज डालता है। यह तो उदयकर्म से होता है और खुद उसका गर्व लेता है । जो उदयकर्म का गर्व ले, उसे साधु कैसे कहेंगे?
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मुक्त पुरुष ही छुड़वाएँ
ये सब भूलें तो हैं ही न? उसकी खोज भी नहीं की है न? प्रश्नकर्ता : इनमें से निकलने की कोशिश करते हैं, लेकिन और गहरे उतरते जाते हैं ।
दादाश्री : नहीं, ऐसी कोशिश ही मत करना। यदि यहाँ पर खोदना है और भाई कहीं और खोद कर आए तो फिर उससे क्या होगा ? बल्कि दंड मिलेगा ! ऐसे ही ये लोग उल्टी कोशिश करते हैं । इसके बजाय कोई 'मुक्त' हो चुका हो, उसके पास जा तो तेरा भी छुटकारा कर देंगे। ये तो खुद ही डूबे हुए हैं, वे दूसरों को कैसे तारेंगे? जो डॉक्टर पार नहीं उतरे हों, खुद ही गोते खा रहे हों, वे दूसरों को किस तरह तारेंगे? कभी भी अच्छा संयोग प्राप्त नहीं हुआ है। अब यह 'ज्ञानीपुरुष' का अच्छा संयोग प्राप्त हुआ है तो आपका काम निकल जाएगा। कभी न कभी भूल तो मिटानी ही पड़ेगी न? अति - अति मुश्किल क्या है? ‘मोक्षदाता पुरुष।' और मिलने के बाद 'मोक्षदाता' आपको बंधन में क्यों रखेंगे?
हमने आपको 'स्वरूप ज्ञान' दिया उसके बाद आपको जो दशा उत्पन्न हुई है, वह कृष्ण भगवान की बताई हुई 'स्थितप्रज्ञ' दशा से कहीं ऊँची दशा है। यह तो प्रज्ञा कहलाती है ! उससे राग-द्वेष का निंदन कर देना ।
यह जगत् ‘व्यवस्थित' है। इसलिए अपनी जो गुनहगारी थी, 'व्यवस्थित शक्ति' उसे वापस अपने पास भेज देती है । उसे आने देना है और हमें अपने मोक्ष में रहकर उसका निकाल कर देना है। पिछले जन्म में जो जो भूलें की थीं, वे इस जन्म में सामने आती हैं। इसलिए इस जन्म में हम सीधे चलते हैं, फिर भी वे भूलें बाधा डालती हैं, उसका नाम गुनहगारी !