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व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ
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लेकिन छींका निकालना भूल गया। बेचारा बैल क्या करे? पेट में भूख लगी थी लेकिन करे क्या? किससे कहे? रात को बारह बजे किसान आया और सो गया। बैल की कुछ खोज-खबर ली नहीं। बैल तो जमीन पर पैर पटकता रहा सारी रात ! उसने सुबह देखा तब पता चला कि छींका निकालना भूल ही गया था!
जीवन - तेली के बैल जैसे
अनंत जन्मों से तेली के बैल की तरह मज़दूरी की है, फल में मिला क्या? तो कहे, खल का एक टुकड़ा! ऐसे ही भाई सारे दिन घानी के बैल की तरह मेहनत करके मर जाता है, तब रात को हाँडवे (एक गुजराती व्यंजन) का एक टुकड़ा मिलता है। बहुत सारे दुःख भुगते हैं। बेहिसाब मार खाई है। ये तो फिर कल्पित दु:खों को निमंत्रित करने के लिए पत्रिका भेजते हैं। विवाह में मौसी के मामा जी के बेटे को बुलाते हैं। ज़रूरत हो उसी को निमंत्रण भेज न! लेकिन यह तो सभी को निमंत्रण देता है और फिर सभी आते हैं। इस दुःख को ऐसा नहीं है कि इनके यहाँ जाऊँ और इनके यहाँ नहीं जाऊँ। और सुख को भी ऐसा नहीं है कि इनके यहाँ जाऊँ
और इनके यहाँ नहीं जाऊँ। लेकिन जिसे निमंत्रण भेजता है, वही आते हैं। फिर कहता है कि दु:ख क्यों आया?
ये गाँव की स्त्रियाँ इकट्ठी होती हैं और फिर सुख-दुःख की बातें करती हैं। स्त्री कहती है कि, "मुझे तो मेरे 'उनको' एक दिन झिड़की लगानी है" और पुरुष इकट्ठे होकर बाते करते हैं कि, 'मुई को दो धौलें लगाने जैसा है।' उसके बाद देखो। वह झिड़कती है और पति उसे दो धौलें मारता है ऐसा है यह संसार! इस संसार में ज़रूरत की चीजें कितनी? दो टाइम खाने को मिले और नहाने का पानी मिले तो ठीक है, लेकिन पीने का पानी तो चाहिए। इतने छोटे बाल हों तो उनमें रूसी होती है कभी? ये तो बाल बढ़ाते हैं और फिर रूसी होती है। ये तो बिना बात के दुःखों को निमंत्रण देते हैं।
संसार, वह तो निरा दुःख का भंडार है। उसमें बोल नहीं सकते,