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आप्तवाणी-२
प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : कितने बजे भोजन करवाते हो?
प्रश्नकर्ता : सुबह आठ बजे भोजन करवाकर, सुलाकर, फिर प्रसाद लेकर ऑफिस जाता हूँ।
दादाश्री : फिर दोपहर को खाना खाते हो? प्रश्नकर्ता : भूख लगे तब कहीं भी खा लेता हूँ।
दादाश्री : हाँ, लेकिन उस समय ठाकुर जी को भूख लगी है या नहीं उसका पता लगाया?
प्रश्नकर्ता : वह किस तरह करूँ?
दादाश्री : वे फिर रोते रहते हैं बेचारे! भूख लगे तो क्या करेंगे? इसलिए आप मेरा कहा हुआ एक काम करोगे? करोगे या नहीं करोगे?
प्रश्नकर्ता : ज़रूर करूँगा, दादा।
दादाश्री : तो आप जब खाओ न तो उस समय ठाकुर जी को याद करके, अर्पण करके आप खा लीजिए, फिर मैं खाऊँगा, आपको भूख लगी होगी' ऐसा कहकर फिर खाना। ऐसा करोगे? ऐसा हो सके तो हाँ कहना और नहीं हो सके तो ना कहना।
प्रश्नकर्ता : लेकिन साहब, मैं ठाकुर जी को सुलाकर आता हूँ न!
दादाश्री : ना, सुला देते हो लेकिन भूखे रहते हैं न? इसलिए वे बोलते नहीं हैं न! वे कितनी देर सोते रहेंगे फिर! इसलिए बैठते हैं और सो जाते हैं, फिर बैठते हैं और सो जाते हैं। आप ऐसी खुराक तो नहीं खाते हो न, कि जो उनके लिए चले नहीं। सात्विक खुराक होती है न? तामसी खुराक हो तो हमें नहीं खिलाना चाहिए। लेकिन सात्विक खुराक हो तो आप उनसे कहना कि, 'लीजिए, भोजन कर लीजिए ठाकुरजी।' इतना आपसे हो सके ऐसा है? तो कभी ठाकुर जी आपके साथ बोलेंगे, वे खुश हो जाएँगे उस दिन बोलेंगे। क्यों नहीं बोलेंगे? अरे, ये दीवारें भी