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राग-द्वेष
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जहाँ अज्ञान है, वहाँ राग-द्वेष है और जहाँ ज्ञान है, वहाँ वीतरागता! प्रश्नकर्ता : कोई चीज़ याद आती रहे तो वह क्या है?
दादाश्री : याद, वह राग-द्वेष के कारण है। यदि याद नहीं आ रहा होता तो पड़ी हुई गुत्थियों को भूल जाता। आपको क्यों कोई फॉरेनर्स याद नहीं आते और मृत लोग क्यों याद आते हैं? यह हिसाब है और यह रागद्वेष के कारण है, उसका प्रतिक्रमण करने से राग-द्वेष(लगाव) खत्म हो जाएगा। जिसके ऊपर राग होता है, वह रात को भी याद आता है और जिसके ऊपर द्वेष होता है, वह भी रात को याद आता है। पत्नी पर राग करता है! लक्ष्मी पर राग करता है! राग तो सिर्फ एक 'ज्ञानी' पर ही करने जैसा है। हमें राग भी नहीं है और द्वेष भी नहीं है, हम तो संपूर्ण वीतराग
'मैं चंदूलाल हूँ' वह आरोपित जगह पर राग है और इसलिए अन्य जगह पर द्वेष है! इसका अर्थ यह है कि स्वरूप में द्वेष है। नियम कैसा कि एक जगह पर राग हो तो उसके सामने द्वेष अवश्य होता ही है, क्योंकि राग-द्वेष, वह द्वंद्वगुण है। इसलिए वीतराग बन जाओ, 'वीतराग,' वह द्वंद्वातीत है।
बखान करने पर राग नहीं हो और निंदा करने पर द्वेष नहीं हो, ऐसा होना चाहिए। यह बखान करना और निंदा करना, ये दोनों एक ही माँ के बेटे हैं, तो फिर उनके साथ जुदाई किसलिए? इसलिए हम तो बखान भी कर सकते हैं और निंदा भी कर सकते हैं। उन दोनों में मुँह सिल नहीं जाना चाहिए, मात्र भाव में फर्क है। बाकी दोनों ही, बखान करना (वखाणवू)-निंदा करना (वखोडवू) चार अक्षर के और 'व' 'व' पर से ही है। निंदा नहीं करने की कसम' खा लें, तो कभी न कभी वह छोड़नी ही पड़ेगी।
वीतरागता कहाँ है? दोनों में ही, कोई बखान करे या बदगोई करे फिर भी समदृष्टि रहती है। हम नग्नसत्य बोलते हैं, लेकिन भाव में समदृष्टि ही रहती है। यह बखान और बदगोई, आपको इन दोनों के साथ निभा