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आप्तवाणी-२
अतः दुःख किसे कहते हैं? स्पर्श करे, उसे। बेटे की उँगली कट जाए तो क्या? वह तो बेटे को दुःख हुआ, लेकिन उसमें तो बाप भी दुःख अपने सिर ले लेता है। भगवान क्या कहते हैं कि हमने बेटे को एक पाउन्ड दु:ख दिया था, उसमें से बाप आधा पाउन्ड लेकर घूमता है और माँ पाव पाउन्ड लेकर घूमती है। अब इन्हें मूर्ख नहीं तो क्या कहेंगे?
तू मुझे कहे कि, 'दादा, पेट में दर्द हो रहा है।' और वहाँ पर मैं कहँ कि, 'तु आत्मा है न?' तब तो मैं ज्ञानी नहीं कहलाऊँगा। वह तो हमें सुनना ही पड़ेगा। लेकिन 'खिचड़ी में घी नहीं मिला' ऐसा कहे, तो वह हम नहीं सुनेंगे। इसे दुःख नहीं कहते।
यह बहुत गहन बात है। यदि कोई भी दुःख है तो उस दुःख का उपाय होता ही है। दाढ़ दुःखे तो उसे दुःख कहते हैं, क्योंकि डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवा सकते हैं, दाढ़ निकलवाई जा सकती है। दुःख तो किसे कहते हैं? जिनके उपाय हों, उन्हें। जिनके उपाय नहीं हों, उन्हें दुःख कहेंगे ही नहीं। यह तो बेटे को एक पाउन्ड दुःख था और उसमें तूने किसलिए और आधा पाउन्ड ले लिया? कुत्ते के बच्चे (पिल्ले) को चोट लगे तो कुत्ते नहीं रोते, उसे चाटकर घाव भर देते हैं। उसकी लार में घाव भरने की शक्ति होती है। उसे खुद को कुछ हो जाए तो चीखताचिल्लाता है! और इस निराश्रित (मनुष्य) को तो दूसरों को हो जाए, तब भी खुद सिर पर ले लेता है!
एक व्यक्ति आया था। वह बोला, 'मुझे तो भारी पीड़ा आ पड़ी है।' मैंने पूछा, 'क्या है?' तो वह कहता है, 'पत्नी को डिलीवरी होनेवाली है।' पत्नी डिलीवरी के लिए गईं तो वह कुछ नया है? इन कुत्ते-बिल्ली सभी को डिलीवरी होती है न? पोस्टवाले भी डिलीवरी करते हैं, उसमें नये जैसा है ही क्या? अंदर डरता है कि पड़ोसी की स्त्री डिलीवरी के समय खत्म हो गई थी, तो मेरी पत्नी का क्या होगा? उसके बाद हमने उसे बात समझाई, और उसे समाधान करवा दिया। कोई मंत्र बता देते हैं कि, 'यह बोलना,' ताकि उसमें उसका ध्यान रहे। नहीं तो वही के वही विचार करता रहेगा कि, 'ऐसा हो गया था तो ऐसा हो जाएगा तो?' ऐसे