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आप्तवाणी-२
जाएगा। 'इन' ज्ञानी के पास तो हर एक दुःख दूर होगा लेकिन आप इच्छा ही नहीं करोगे तो! पैर में यदि चोट लगी हो और पट्टी लगाई हो और 'ज्ञानी' ने कहा हो कि, 'इसे उखाड़ना मत।' और फिर भी यदि उखाड़ता रहे तो उसका क्या उपाय है? यह तो ज्ञानी ने कहा है, उसे फिर क्यों हिलाना चाहिए?
व्यवहार में रोज़ सुबह उठते ही 'दादा' को याद करके निश्चय करना और पाँच बार बोलना कि, 'इस मन-वचन-काया से जगत् के किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी दु:ख न हो, न हो, न हो!' इतना निश्चय किया तो फिर अंदर पुलिस विभाग सचेत हो जाता है। अंदर तो तरह-तरह की वंशावलियाँ हैं, बहुत बड़ी सेना है। 'ज्ञानीपुरुष' की हाज़िरी में इतना करने से शक्तियाँ आ जाती हैं, और फिर जाती नहीं। ऐसा नक्की करके, दादा को सामने बैठाकर और अगर 'वह' वंशावलि खड़ी हो जाए, फिर भी उसे कुछ भी खाने-पीने का नहीं देना चाहिए!
कंटाला का स्वरूप
दादाश्री : कंटाला का अर्थ क्या है? प्रश्नकर्ता : कुछ अच्छा नहीं लगे, वह।
दादाश्री : कंटाला यानी काँटों के बिस्तर पर सोने से जो दशा होती है, वह ! जब कंटाला आता है, तब इलाज करते हो? ड्रगिस्ट से कोई दवाई लाते हो?
प्रश्नकर्ता : वह तो कहीं भी नहीं मिलती। दादाश्री : लेकिन कुछ तो करते होंगे न? प्रश्नकर्ता : बाहर घूमने चला जाता हूँ।
दादाश्री : यह तो माँगनेवाले को वापस बाहर निकालने जैसा है। जब कंटाला (ऊब जाना, बोरियत होना) आता है, तो वह क्या कहता है? नेचर क्या कहता है? कि इसका पेमेन्ट कर दो। तब वह कहता है, 'नहीं,