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व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ
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हम ऐसा नहीं करेंगे।' और भाग-दौड़ करके रख देता है, वह तो कंटाले को वापस निकाल देता है। लेकिन जब वह एक साथ माँगने आएगा तब क्या होगा? जब कंटाला आए तब सिनेमा देखने चला जाता है। यह तो अन्य उपाय किया, विरोध किया। कंटाला आए तब जो स्थिर बैठा रहे तो वह शोध कर सकेगा कि, 'किस वजह से आया, यह क्या है?' तो वहाँ पर पुरुषार्थ धर्म जागृत हो सके, ऐसा है, जबकि वहाँ पर उल्टा उपाय करता है और उसे वापस धकेल देता है।
प्रश्नकर्ता : बाहर जाने से कंटाला नहीं मिटता है।
दादाश्री : कंटाला आता है तब बाहर जाता है न, उससे ब्लड सरक्युलेशन होता है इसलिए कंटाले के संयोग बिखर जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : जब कंटाला आए तब कुछ लोग तो व्हिस्की पीते हैं।
दादाश्री : कंटाले का उपाय करते हैं, इसलिए ब्रांडी पीते हैं, भागदौड़ करते हैं। यह भी एक प्रकार की मूर्छा ही है। कंटाला आता है लेकिन सहनशक्ति नहीं है, वर्ना जब कंटाला आए तब सोचता कि 'क्यों आया? कौन सी भूल रह गई?' ऐसी सब खोज करनी चाहिए। लेकिन यह तो कुछ भी नहीं करता और भागदौड़ करता रहता है और पीता है। उससे राहत मिलती है लेकिन फिर जब पावर उतरे तब वापस कंटाला शुरू हो जाता है। इस संसार के दुःख एक क्षणभर के लिए भी शांति दें ऐसे नहीं हैं।
इंसान को कंटाला अच्छा नहीं लगता। कुछ तो जी भी जलाते हैं। जी मत जलाना। कपड़े जलाए तो नये लाए जा सकते हैं लेकिन जी जलाएगा तो फिर नया कहाँ से लाएगा?
___ठाकुर जी की पूजा दादाश्री : पूजा करते समय तो कंटाला नहीं आता न? प्रश्नकर्ता : नहीं।