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आप्तवाणी-२
हिसाब पूरे हो जाते हैं, तब बिछड़ जाते हैं, मर जाता है और यदि फिर से नये हिसाब नहीं बाँधे हों तो फिर नहीं मिलते।
ये सौ रुपये के कप-प्लेट हैं वे, जब तक अपना हिसाब है, ऋणानुबंध है, तब तक वे जीवित रहेंगे। लेकिन हिसाब पूरा होने के बाद प्लेट फूट जाती है। वह फूट गई, वह व्यवस्थित है, फिर से याद नहीं करने होते हैं। और ये इंसान भी कप-प्लेट ही हैं न? यह तो दिखता है कि ये मर गए, लेकिन मरते नहीं हैं, फिर से यहीं पर आते हैं। इसीलिए तो जब हम मृत के प्रतिक्रमण करते हैं तो उसे पहुँचते हैं। वे जहाँ हों, वहाँ उन्हें पहुँचते हैं।
कड़वा पीए, वह नीलकंठ प्रश्नकर्ता : दादा, कोई कड़वे शब्द कहे तो वे सहन नहीं होते, तो क्या करना चाहिए मुझे?
दादाश्री : देख इसका तुझे खुलासा करूँ। इस रास्ते के बीच काँटा पड़ा हो, और हज़ारों लोग निकलें लेकिन काँटा किसी को भी नहीं चुभता, लेकिन जब चंदूभाई जाएँ तो काँटा टेढ़ा हो, फिर भी ऐसा चुभता है कि पँजे में से आरपार निकल जाता है ! कड़वे का स्पर्श होना, वह हिसाबवाला होता है। और कड़वे का स्पर्श होता है, तब मानना चाहिए कि अपने कड़वे की रकम में से एक कम हुई। जितना कड़वा सहन करोगे, उतने आपके कड़वे कम होंगे। मीठा भी जब स्पर्श होता है, तब उतना कम होता है। लेकिन यह कड़वा स्पर्श होता है तब अच्छा नहीं लगता। यह कम स्पर्श होता है, फिर भी कड़वा क्यों अच्छा नहीं लगता? उससे कहें कि कड़वा फिर से दे न?! तो भी वह नहीं देगा। ऐसी तो किसी के हाथ में सत्ता है ही नहीं। सभी कुछ हिसाबवाला है, सिलक के साथ में है, कोई गप्प नहीं है। मरने तक का सभी कुछ हिसाब सहित है। यह तो हिसाब के अनुसार होता है कि इनकी तरफ से ३०१ आएँगे, उसके पास से २५ आएँगे, इसके पास से १० आएँगे। 'ज्ञान' यदि हाज़िर रहता हो तो कुछ भी सहन नहीं करना पड़े। यह तो सारा रिलेटिव रिलेशन है। कड़वा-मीठा सबकुछ