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व्यवहारिक सुख-दुःख की समझ
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चुकी होती है। गुनाह करके फिर भूल जाती है । उसे भुगतते समय कहती है कि मुझे यह दु:ख किसलिए आया?
बहीखातों के हिसाब
यह संसार तो समझने जैसा है। ये चाचा क्या है? मामा क्या है? पति क्या है? पत्नी क्या है ? ये तो बहीखाते के हिसाब हैं। लेकिन ऐसा तो जाना ही नहीं। यदि जान जाए तब तो हिसाब ही साफ करता जाए। और यह तो जानता नहीं है इसलिए फिर एक हिसाब चुकता है और दूसरा हिसाब बढ़ाता जाता है, और मामा का हिसाब बाकी हो तो किसी भी निमित्त से हिसाब चुके बगैर रहनेवाला नहीं है न!
जगत् दुःख भोगने के लिए नहीं है, सुख भोगने के लिए है। जिसका जितना हिसाब हो उतना होता है। कुछ लोग सिर्फ सुख ही भुगतते हैं, वह किसलिए? कुछ सिर्फ दुःख ही भुगतते हैं, वह किसलिए? खुद ऐसे हिसाब लाया है इसलिए। इन समाचारों में रोज़ आता है कि, 'आज टैक्सी में दो लोगों ने इन्हें लूट लिया, फलाँ फ्लेट के मेमसाहब को बाँधकर लूट लिया।' यह पढ़कर अपने को कहीं डरने की ज़रूरत नहीं कि मैं भी लुट गया तो? यह विकल्प ही गुनाह है। इसके बजाय तू सहज रूप से चलता रह न। तेरा हिसाब होगा तो ले जाएगा, वर्ना कोई बाप भी पूछनेवाला नहीं है । 'भुगते उसी की भूल । ' इसलिए तू निर्भय होकर घूम। ये पेपरवाले तो लिखेंगे, इसलिए क्या हम डर जाएँ? ये तो डायवोर्स थोड़े कम होते हैं, वह अच्छा है। फिर भी, यदि डायवोर्स ज़्यादा होने लगेंगे तो सभी को शंका का स्थान मिल जाएगा कि अपना भी डायवोर्स हो गया तो? एक लाख लोग जिस जगह पर लुट गए, वहाँ पर भी आप डरना मत । आपका कोई बाप भी ऊपरी नहीं है।
अपने को किसी ज्योतिषी ने हाथ देखकर कहा हो कि चार घात हैं, तो चार घातों में आपको सावधान रहना चाहिए। अब उसमें से एक घात गई तो आनंद मनाओ कि सिलक ( जमापूँजी) में से एक कम हुई ! वैसे ही अपमान, गालियाँ ऐसा सब अपने पास आए तो आनंद मानना कि