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कुदरती नियम : 'भुगते उसी की भूल'
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उसी की भूल।' यह कोई अँधेर राज नहीं है। यह जगत् एक्ज़ेक्ट न्याय स्वरूप है। यह जगत् एक सेकन्ड भी बगैर न्याय के नहीं रहा है।
साँप ने काटा और आदमी मर गया, उसमें उस आदमी की भूल है। साँप तो पकड़ा जाएगा, तब उसकी भूल मानी जाएगी।
हमने किसी व्यक्ति को पैसे दिए हों और फिर छ: महीने तक वह व्यक्ति पैसे वापस नहीं दे, तो? अरे, दिए किसने? तेरे अहंकार ने उसे पोषण दिया, इसलिए तूने दयालु बनकर पैसे दे दिए। तो अब जमा कर उस व्यक्ति के खाते में और अहंकार के खाते में उधार।
दो लोग मिल जाएँ और लक्ष्मीचंद पर आरोप लगाएँ कि आपने मेरा बुरा किया है तो लक्ष्मीचंद को रात को नींद नहीं आएगी और वे लोग तो चैन से सो जाते हैं। इसलिए भूल लक्ष्मीचंद की है। लेकिन दादा का वाक्य 'भुगते उसी की भूल' याद आया तो लक्ष्मीचंद चैन से सो जाएगा, नहीं तो उन लोगों को कितनी ही गालियाँ देगा!
यह तो जिसे पत्थर लगा उसी की भूल। सिर्फ भूल ही नहीं लेकिन भुगतने का इनाम भी है। पाप का इनाम मिले तो वह उसके बरे कर्तव्य का दंड है और फूल चढ़ें तो उसके अच्छे कर्तव्य का इनाम है, फिर भी दोनों भोगवटे (सुख या दुःख का असर) ही हैं - अशाता (दु:ख-परिणाम) का या शाता का।
न्याय के लिए कोर्ट में जाना, वही सबसे बड़ा अन्याय है!
यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल फॉर यॉरसेल्फ। ये दु:ख देते हैं वे तो मात्र निमित्त हैं, लेकिन मूलतः भूल तो खुद की ही है। जो फायदा करता है वह भी निमित्त है, और जो नुकसान करवाता है वह भी निमित्त है। लेकिन वह अपना ही हिसाब है, इसलिए ऐसा होता है!
बेटा दरवाज़ा बंद करे और अपनी उँगली अंदर आ जाए तो बेटे को डाँटना नहीं चाहिए। ये तो हमने भुगता है, इसलिए अपनी ही भूल। इस बेटे को क्या कहना पड़ेगा? उसे कहना पड़ेगा कि, 'देख, तू ऐसे शरारत