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कुदरती नियम : 'भुगते उसी की भूल'
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है। किसी समय अहंकार भुगतता है तो वह अहंकार की भूल है। किसी समय मन भुगतता है तो वह मन की भूल है, कभी चित्त भुगतता है तो उस समय चित्त की भूल है। यह तो खुद की भूल में से 'खुद' स्वतंत्र रह सके, ऐसा है।
यदि 'ज्ञानीपुरुष' का एक ही शब्द समझ जाए और उसे पकड़कर बैठ जाए तो मोक्ष में ही जाएगा। किसका शब्द? 'ज्ञानी' का! इसलिए किसी को किसी की सलाह लेनी ही नहीं पड़े कि, किसकी भूल है इसमें? 'भुगते उसी की भूल।'
न्याय करनेवाला यदि चेतन हो न, तब तो शायद पक्षपात करे भी, लेकिन जगत् का न्याय करनेवाला निश्चेतन चेतन है। उसे जगत् की भाषा में समझना हो तो वह कम्प्यूटर जैसा है। इस कम्प्यूटर में प्रश्न डालो तो कम्प्यूटर की तो शायद भूल हो भी सकती है, लेकिन जगत् के न्याय में भूल नहीं होती। इस जगत् का न्याय करनेवाला निश्चेतन-चेतन है, और वह फिर 'वीतराग' है!
जीवों की संपूर्ण स्वतंत्रता कोई जीव किसी जीव को परेशान ही नहीं कर सकता। यदि एक जीव दूसरे जीव को परेशान कर सकता तो 'यह वर्ल्ड झूठा है, ऐसा कहा जा सकता है।' इस वर्ल्ड का सिद्धांत खत्म हो जाएगा, टूट जाएगा। कोई जीव किसी जीव को ज़रा सा भी परेशान कर सके, अगर उसकी इतनी स्वतंत्र शक्ति होती तो पूरे वर्ल्ड के सभी सिद्धांत फ्रेक्चर हो जाते। कोई जीव किसी जीव का कुछ भी नहीं कर सकता, इतना स्वतंत्र है यह जगत् ! अपना ही फल अपने को मिलता है! बाकी कोई ऊपरी नहीं है। ऊपरी होता तब तो किसी का भी मोक्ष नहीं हो पाता! कोई व्यक्ति आपके काम में अवरोध नहीं डाल सकता है। आपकी ही भूलें आपकी ऊपरी हैं।
कोई जीव अगर आपको दुःख देता है, तो वह तो निमित्त है। तेरी जेब कट गई, वह किसलिए? तब कहे, 'उस जेब काटनेवाले को जेब काटने का व्यू पोइन्ट आया है। उसे जेब काटने में ही सुख मिलता है कि