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आप्तवाणी-२
लेना चाहिए? अरे, यह तो ऐसा ही व्यवहार है, इसमें क्या न्याय करने का रहा?
हर एक के साथ अपना व्यवहार होता है। उसे हमें समझ लेना है कि इसके साथ सीधा व्यवहार लाए हैं, इसके साथ ऐसा टेढ़ा व्यवहार लाए हैं। बेटी होकर भी सामने बोली, वही तेरा व्यवहार है। उसमें न्याय कहाँ देखेगा? और दूसरी बेटी हम थके हुए नहीं हों, फिर भी हमारे पैर दबाती रहती है, वह भी तेरा व्यवहार है। उसमें भी न्याय मत देखना।
ये न्याय देखने जाते हैं, उसी में फँस जाते हैं। व्यवहार तो खुलता जाता है और जैसा लाए होंगे, वैसा ही वापस मिलता है। जबकि न्याय तो क्या है कि 'सामनेवाला ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए' ऐसा दिखाता है। न्याय किसके लिए है? जिसे 'मेरी भूल है' ऐसा समझ में आता है, उसके लिए उस भूल को मिटाने के लिए, वह न्याय है। जिसे ऐसा है कि 'मेरी भूल होती ही नहीं, उसके समझने के लिए व्यवहार है। न्याय, वह तो कॉमन लॉ है। जिसे मोक्ष में जाना हो उसे न्याय देख-देखकर काम आगे चलाना है, और जिसे मोक्ष की नहीं पड़ी है और संसार में ही रहना है, उसका और कॉमन लॉ का कोई लेना-देना नहीं है। न्याय तो थर्मामीटर है। हमने जो किया उसे देख लेना है कि हमने किया वह न्याय में है या न्याय से बाहर है? न्याय में होगा तो ऊर्ध्वगति में जाएगा और न्याय से बाहर होगा तो अधोगति में जाएगा।
प्रश्नकर्ता : इस काल में वाणी का ही झंझट है न?
दादाश्री : सामनेवाला क्या बोला, कठोर बोला या नरम बोला, उसके हम ज्ञाता-दृष्टा । हम क्या बोले, उसके भी हम ज्ञाता-दृष्टा। और उसमें यदि सामनेवाले को शूल लगे ऐसा बोल दिया गया हो, तो वह तो व्यवहार है। वाणी कठोर निकली, वह उसके व्यवहार के अधीन निकली, लेकिन यदि आपको मोक्ष में ही जाना हो तो प्रतिक्रमण करके उसे धो डालो। कठोर वाणी निकली और सामनेवाले को दुःख हुआ, वह भी व्यवहार है। कठोर वाणी क्यों निकली? क्योंकि आज सामनेवाले का और अपना व्यवहार ज़ाहिर हुआ और भगवान भी इस व्यवहार को एक्सेप्ट करते हैं।