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जगत् व्यवहार स्वरूप
यह जगत् 'न्याय' स्वरूप नहीं है, 'व्यवहार' स्वरूप है। भगवान ने कहा है कि, 'न्याय मत देखना, नहीं तो बुद्धि विभ्रमित हो जाएगी।' व्यवहार देखना लेकिन न्याय मत देखना। यानी व्यवहार में न्याय करने जैसा नहीं है। व्यवहार जैसा है वैसा है, इतना समझ लेना है।
व्यवहार, व्यवहार स्वरूप है, वह आपको समझाता हूँ। आपके यहाँ विवाह हो और आपके सगे भाई के साथ आपने व्यवहार नहीं किया हो, मिठाई का उपहार नहीं भेजा हो और आपके भाई के वहाँ विवाह का अवसर आए तो क्या आप ऐसी आशा रखोगे कि उसके वहाँ से मिठाई आए? नहीं रखोगे, क्योंकि उस भाई के साथ वैसा ही व्यवहार था और यदि एक भाई के वहाँ से विवाह के अवसर पर सोलह लड्डू आए हों
और दूसरे भाई के वहाँ से तीन लड्डू आए हों तो आपके ध्यान में क्या होना चाहिए कि, 'भले ही आज मेरे ध्यान में नहीं है लेकिन मैंने तीन ही लड्डू भेजे होंगे। मेरा व्यवहार ही ऐसा रहा होगा, तीन लड्डू होंगे इसलिए सामने से तीन आए।' व्यवहार में न्याय नहीं देखना होता है, व्यवहार व्यवहार स्वरूप ही है।
यह पंखा फुल स्पीड पर घूम रहा था। उसका रेग्युलेटर बिगड़ गया, हमें पता नहीं था इसलिए कहा कि, 'पंखा ज़रा कम करो।' तब कहने लगे कि, 'पंखा कम नहीं होता है।' तब हम तुरंत ही समझ गए कि उसका व्यवहार ही ऐसा है। तो फिर उसका न्याय करने कहाँ बैलूं? इसलिए व्यवहार में न्याय नहीं करना होता।
इस घर में बेटे-बेटियों के साथ जो व्यवहार है, वही करना चाहिए। उसमें न्याय क्या करना? पति दुःख दे तो क्या करना चाहिए? डायवोर्स