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आप्तवाणी-२
ही अक़्ल कम थी। हम तो अबुध कहलाते हैं। यह तो आपकी भूलें हैं, इसलिए लाल झंडी दिखाते हैं। उन्हें खुलासा दें तो फिर वे जाने देते हैं।
यथार्थ लौकिक धर्म जगत् के लोगों को हम बहुत सरल लौकिक मार्ग देंगे। यह क्रियाकांड के तूफ़ान नहीं देंगे। कोई लफंगा आए और उसे कहें कि, 'सत्य बोलना, चोरी मत करना, दया रखना, गलत मत करना' तो यह सब सुनकर वह एक ओर रख देगा। लेकिन हम उसे एक ही वाक्य कहें कि, 'भाई, तू गुत्थियाँ मत डालना।' फिर वह पूछे कि, 'गुत्थियाँ यानी क्या?' तब हम उसे फिर से समझाएँ कि, 'तेरे सामने के खेत में तुरई दिखे और तेरा मन हो तब तू निकाल ले, तो ऐसे बिना पूछे किसी का ले लेना, उसे गुत्थी कहते हैं। आया समझ में? तब वह तुरंत कहेगा, 'हाँ, समझ गया गुत्थी को, अब ऐसी गुत्थियाँ नहीं डालूँगा, ऐसी तो मैंने कई गुत्थियाँ डाली हैं।'
फिर वह उसकी बीवी को लेकर आता है तो उसे इन गुत्थियों के बारे में समझा देता हूँ। उसकी बीवी कहे कि, 'दादा, ये मेरे साथ बहुत गुत्थियाँ डालते हैं।' तो फिर मैं उसे भी गुत्थियों के बारे में समझा देता हूँ। इसके बाद जब कभी गुत्थी पड़नेवाली हो तब 'दादा' अवश्य याद आ ही जाएँगे और गुत्थियाँ पड़ेंगी नहीं। 'हम' तो क्या कहते हैं कि ऐसे गुत्थियाँ मत डालना और डल जाए तो प्रतिक्रमण करना। यह तो गुत्थी शब्द से तुरंत ही समझ में आ जाता है। ये लोग 'सत्य, दया, चोरी मत करो' वह सब सुन-सुनकर तो थक गए हैं।
यह लौकिक धर्म तो हम घड़ीभर में ही समझा देते हैं! लेकिन अलौकिक धर्म के लिए ज़रा टाइम लगता है।
प्रश्नकर्ता : कुछ गुत्थियाँ पड़ गई हैं जो सुलझती नहीं हैं, तो क्या
करूँ?
दादाश्री : वक्त उलझाता है और वक्त सुलझाता है, लेकिन भूलें किसकी? हमने अपनी गुत्थियाँ डाली हुई हैं, जब समय आता है, तब अपने आप ही गुत्थियाँ सुलझती जाती है। जिनमें एक भी गुत्थी नहीं है, आप