________________
धर्मध्यान
१३९
हैं और भगवान महावीर के बाद साढ़े तीन साल ही बीते हों ऐसा काल आ रहा है। अभी भले ही दुषमकाल हो, लेकिन अभी सबसे अच्छा काल आया है। खरा काल ही अभी आया है। इस काल में जो लोकनिंद्य नहीं हैं, उन्हें भगवान ने लोकपूज्य कहा है। ऐसा सुंदर यह काल है तो उसका लाभ उठा लेना चाहिए न?
हम इस काल में नक़द मोक्ष दे सकते हैं। यहीं मोक्ष बरतेगा। हम मोक्षदाता हैं, मोक्ष के लाइसेन्सदार हैं। जगत् कल्याण के निमित्त हैं हम। हम उसके कर्ता नहीं हैं। हम कभी भी किसी भी चीज़ के कर्ता नहीं बनते हैं क्योंकि जो कर्ता बने तो उसका भोक्ता बनना ही पड़ता है। हम निमित्त भाव में ही रहते हैं।
इसलिए सभी को भले ही मोक्षधर्म का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सके, लेकिन धर्मध्यान तो इस काल में फुल स्टेज पर जा सकता है, ऐसा है। 'अक्रम मार्ग' से मोक्ष तो कुछ महा पुण्यशालियों को ही प्राप्त होता है, लेकिन बाकी सभी को, हम सबसे उच्च धर्मध्यान दे सकते हैं ऐसा है। रौद्रध्यान और आर्तध्यान, वह अधर्मध्यान है। धर्मध्यान, वह धर्मध्यान है और शुक्लध्यान, वह आत्मध्यान है। रौद्रध्यान और आर्तध्यान जाएँ उसी को कहते हैं धर्मध्यान।