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निज दोष
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रहती है। निराधार हो जाए, तो गिर जाएगी। जगत् इस (अज्ञान) आधार से खड़ा है। निराधार हो जाए तब तो खड़ा ही नहीं रहे, लेकिन निराधार करना आता नहीं है न! वे तो ज्ञानियों के ही खेल हैं! यह जगत् तो अनंत 'गुह्यतावाला' है, उसमें 'गुह्य से गुह्य' भाग को कोई कैसे समझे!
शिकायत करनेवाला ही गुनहगार पहले शिकायत करने कौन आता है? कलियुग में तो जो गुनहगार हो वही पहले शिकायत करने आता है और सत्युग में जो सच्चा हो वह पहले शिकायत करने आता है। इस कलियुग में न्याय करनेवाले भी ऐसे ही हैं कि जिसका पहले सुना उसके पक्ष में बैठ जाते हैं।
कोई छोटी बच्ची हो, शाम को जब पापा घर पर आएँ, तब तुरंत ही वह बच्ची पापा के पास जाती है और कहती है, 'पापा, भैया ने मुझे ऐसा-ऐसा कहा। उसके बाद फिर पापा तुरंत ही बेटी के पक्ष में बैठ जाते हैं और बेटे से कहते हैं कि 'एय, इधर आ। ऐसा क्यों किया?' बेटे को डाँटने से पहले बेटे को पूछ कि बेटी की बात का मतलब क्या था? और क्यों बेटी ने शिकायत की? बेटे ने क्यों शिकायत नहीं की? बेटे ने क्या किया था? यह तो खुद सेन्सिटिव है, इसलिए बेटी की बात सही मान लेता है। फिर कहता है कि, 'मैं ज़रा कच्चे कान का हूँ इसलिए भूल हो गई!' यह तो खुद मूर्ख है और कान की भूल बताता है। खुद निष्कर्ष नहीं निकालता कि बेटी गुनहगार है, इसलिए पहले शिकायत लेकर आई! घर में तो सभी तरह की बातें होती हैं, हमारे पास सबकी शिकायतें आएँ तो हम क्या करते थे कि सबकी बातें सुनते थे और फिर न्याय करते थे। सच्चा न्याय करने से फिर गुनहगार नहीं बढ़ते। गुनहगार समझता है कि ये तो न्याय करते हैं, इसलिए हमारी भूल पकड़ी जाएगी। __इस जगत् में अपने को खुलासा ही नहीं करना होता है। गुनहगार को ही खुलासे करने होते हैं, खुलासे देने पड़ते हैं। इस जगत् में सब को आर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) होना है! मैं किसी आर्बिट्रेटर को घुसने ही नहीं हूँ। इस जगत् में जो हो रहा है, उससे अलग नये प्रकार का कुछ कभी भी