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आप्तवाणी-२
होनेवाला है ही नहीं। कीचड़ तो कहता है, तुझे पसंद हो तो हाथ डालना। तुझे हाथ धोने जाना पड़ेगा। हमें तो अपनी ही नाड़ी देखनी है। कोई आर्बिट्रेटर बने, ऐसा हमें स्कोप (अवसर) ?
दादाश्री : कोई कुछ करते हुए हिचकिचा रहा हो तो आप कहो कि, 'तू तो कर, मैं हूँ ना!' वह अनुमोदन कहलाता है। और अनुमोदन करनेवाले की ज़िम्मेदारी अधिक कहलाती है! करने का फल किसे अधिक मिलता है? तब कहें कि, जिसने ज़्यादा बुद्धि इस्तेमाल की, उसके आधार पर वह बँट जाता है। ये लोग तो कैसे हैं कि दूसरों की सारी भूलें पता चल जाती हैं और खुद की एक भी भूल नहीं दिखती। जब मन आड़ा चले तब कहेगा कि अब तो इस जगत् से ऊब गया हूँ। भीतर बुद्धि दख़ल दे तब कहेगा कि मेरी बुद्धि आड़ी हो रही है। भीतर अंतहीन 'रामायण' और 'महाभारत' सबकुछ है, उसी का वह मालिक बन बैठा है।
ब्रह्मांड का मालिक कौन? इस ब्रह्मांड का, हर एक जीव ब्रह्मांड का मालिक है। केवल खुद का भान नहीं है, इसीलिए जीव की तरह रहता है। खुद की देह की मालिकी का जिसे दावा नहीं है, वह पूरे ब्रह्मांड का मालिक बन गया। यह जगत् अपनी मालिकी का है, ऐसा समझ में आ जाए, वही मोक्ष! अभी तक क्यों ऐसा समझ में नहीं आया है? क्योंकि अपनी ही भूलों ने बाँधा हआ है, इसलिए। पूरा जगत् अपनी ही मालिकी का है। कोई हमें गाली दे तो वह इसलिए कि खाते में कुछ बाकी होगा, तो उसे जमा कर लेना। अब फिर से कौन व्यापार शुरू करे? जमा कर लेंगे तो व्यापार बंद होता जाएगा और उसके बाद फिर अच्छा माल आएगा।
यह आँख हाथ से दब जाए तो एक चीज़ हो, तो दो दिखाई देने लगती हैं। आँख, आत्मा का रियल स्वरूप नहीं है। वह तो रिलेटिव स्वरूप है। फिर भी, एक भूल होने से एक के बदले दो दिखने लगती हैं न? ये काँच के टुकड़े जमीन पर पड़े हों तो कितनी सारी आँखें दिखती हैं? इस आँख की ज़रा सी भूल से कितनी सारी आँखें दिखती हैं? वैसे ही