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निज दोष किसी को हमसे किंचित् मात्र दुःख हो तो समझना कि भूल अपनी है। अपने भीतर परिणाम ऊपर-नीचे हों तो भूल अपनी है, ऐसा समझ में आता है। सामनेवाला व्यक्ति भुगत रहा है, इसलिए उसकी भूल तो प्रत्यक्ष है ही, लेकिन निमित्त हम बने, हमने उसे डाँटा, इसलिए हमारी भी भूल। क्यों दादा को भोगवटा (सुख-दुःख का असर) नहीं आता? क्योंकि उनकी एक भी भूल नहीं बची है। अपनी भूल से सामनेवाले को कोई भी असर हो और यदि कुछ उधार हो जाए तो तुरंत ही मन से माफ़ी माँगकर जमा कर लेना चाहिए। अपने में क्रोध-मान-माया-लोभ के जो कषाय हैं, वे उधार चढ़ाए बगैर रहते ही नहीं। इसलिए उनके सामने जमा कर लेना चाहिए। अपनी भूल हुई हो, तब उधार हो जाता है, लेकिन तुरंत ही केश नक़द प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। अपने प्रति किसी से अतिक्रमण हो जाए, तो हमें जमा कर लेना चाहिए, और भविष्य के लिए उधार नहीं रखना चाहिए। और यदि किसी के प्रति अपने से भूल हो तो जाए, तब भी हमें आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान कर लेना चाहिए। मन-वचन-काया से प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में क्षमा माँगते रहना। कदम-कदम पर जागृति रहनी चाहिए। अपने में क्रोध-मान-माया-लोभ के कषाय तो भूलें करवाकर उधारी करवाएँ, ऐसा माल है। वे भूलें करवाते ही हैं और उधारी खड़ी करते हैं, लेकिन उसके सामने हमें तुरंत ही, तत्क्षण माफ़ी माँगकर जमा करके साफ कर लेना चाहिए। यह व्यापार पैन्डिग नहीं रखना चाहिए। इसे तो दरअसल नक़द व्यापार कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : अभी जो भूलें हो रही हैं, वे पिछले जन्म की हैं न?
दादाश्री : पिछले जन्म के पापों को लेकर ही ये भूलें हैं। लेकिन वापस इस जन्म में भूलें मिटती ही नहीं और भूलें बढ़ाता जाता है। भूलों