________________
धर्मध्यान
१३७
पुरुषार्थ नहीं होता। पुरुषार्थ तो ज्ञान मिलने के बाद ही हो पाता है। उसके बाद जब ‘स्वक्षेत्र' में बैठे, तब कलुषित भाव कम होते जाते हैं। वर्ना तब तक यदि एक कलुषित भाव कम करने जाए तो दूसरे चार घुस जाते हैं। जब तक हमारे पास ऐसे गार्ड नहीं होते जो उन्हें घुसने न दें, तब तक पूरा ही लश्कर घुस जाता है। गार्ड कब मिलता है? 'पुरुष' बन जाए तब। यानी कि खुद के पास पूरा लश्कर ज्यों का त्यों रहता है। गार्ड नहीं हो, तब तो चोर घुस जाता है तो फिर क्या फायदा हुआ?
दिनोंदिन कलुषित भाव कम नहीं होंगे तो मानवता रहेगी ही नहीं, पाशवता रहेगी।
उच्च गौत्र कब तक है? लोकपूज्य हों तब तक। जो लोकनिंद्य नही हैं, उन्हें कलियुग में भगवान ने लोकपूज्य कहा है। इस कलियुग में इतना लाभ लोगों को मिला है कि यदि इस कलियुग में तेरी निंदा नहीं हो रही है, तो तू लोकपूज्य पद में है! भगवान इस बात में समझदार थे, लेकिन भक्त इतने समझदार नहीं है कि भगवान ने मुझे लोकपूज्य पद दिया है इसलिए मुझे दाग़ नहीं पड़ने देना चाहिए।' वर्ना वास्तव में तो लोकपूज्य नहीं हैं! ऐसे होंगे तो दो या तीन ही होंगे पूरी दुनिया में! गुरु को शिष्य पूजते हैं लेकिन वह तो पुलिसवालों की तरह। पीछे से शिष्य कहेंगे कि, 'जाने दो न उनकी बात,' ऐसा कहते हैं। कृपालुदेव( श्रीमद् राजचंद्रजी) लोकपूज्य थे। लोकपूज्य मतलब सबसे ऊँचा गौत्र। भगवान लोकपूज्य थे। जो-जो भाग लोकनिंद्य हो तो उसके लिए माफ़ी माँगकर धो देना चाहिए।
पूज्य जन हार्टिली होते हैं। भगवान महावीर लोकपूज्य पद लेकर आए थे।
भगवान यानी क्या, कि उनके लेवलवाले आसपास के लोग उनके व्यू पोइन्ट में जो आ गए हों, उन्हें वे ही भगवान लगते हैं। क्राइस्ट भगवान के व्यू पोइन्ट में आए हुए लोगों को महावीर दिखाएँ तो उन्हें महावीर भगवान नहीं लगेंगे, उन्हें तो क्राइस्ट ही भगवान लगेंगे।
इन 'ज्ञानीपुरुष' को भी लोग भगवान की तरह पहचानते हैं। भगवान