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आप्तवाणी-२
आर्तध्यान और रौद्रध्यान बंद नहीं होते हैं । जैन धर्म का सारांश क्या है? तो वह यह कि आर्तध्यान और रौद्रध्यान बंद हो जाएँ तो उसे जैन धर्म प्राप्त कर लिया ऐसा कहा जाता । वे दोनों बंद हो जाएँ तो उसे जैन धर्म का सारांश प्राप्त कर लिया है। भगवान महावीर ने जो कहा उसे प्राप्त कर लिया, ऐसा कहलाता है । वर्ना आर्तध्यान और रौद्रध्यान तो सभी धर्मवालों को होते हैं और आपको भी हों तो फिर कोई अर्थ ही नहीं है न? क्या दूसरों में और इनमें फर्क नहीं होगा? जैन में और अन्य धर्मों में क्या फर्क ही नहीं होगा? अन्य धर्मों में भी चारों ध्यान हैं और जैनधर्म में भी चारों ध्यान हैं, तो फिर उसे वीतराग का धर्म कहेंगे ही कैसे ? अन्य सब धर्मवाले भी इन चार ध्यानों में रहते हैं, और ये भी चार ध्यानों में रहते हैं। चार ध्यानों से ऊपर का पाँचवा ध्यान नहीं है । अब वे भी चार ध्यानों में हैं और आप भी चार ध्यानों में हो, तो उसमें ऐसा कैसे कहेंगे कि आपने प्रगति की? वीतराग धर्म में फर्क तो होना चाहिए न? तब कहते हैं, 'किसमें फर्क होना चाहिए?' तेरे दुर्ध्यान कितने कम हुए हैं? चार ध्यान में से कौन-कौन से ध्यान कम हो गए हैं? कदाचित् रौद्रध्यान बंद हो गया हो और आर्तध्यान रहा, तब भी भगवान चला लेंगे। यदि थोड़ा सा भी आर्त और रौद्रध्यान दोनों जाएँ, उसके बाद ऐसा कहा जाएगा कि वीतराग धर्म प्राप्त हुआ।
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प्रश्नकर्ता : अगम विचार वह कौन सा ध्यान कहलाता है ?
दादाश्री : अगम विचार, वह आर्तध्यान में समाता है अथवा पहले के भूतकाल के विचारों से भी दुःख होता है उसे । सालभर पहले बेटा मर गया हो और आज याद करके रोए तो वह आर्तध्यान कहलाता है । दुःख में आर्त और रौद्रध्यान करता है । इकलौता बेटा मर जाए न, तो कल्पांत करता है। कल्पांत किया यानी कल्प (कालचक्र) के अंत तक तुझे भटकना पड़ेगा! एक करोड़ सालों तक भटकना पड़ेगा !
ये व्यापारी कपड़ा खींचकर नापते हैं तो मुझे उन्हें कहना पड़ता है कि, ‘सेठों मोक्ष जाने की इच्छा नहीं है अब?' तो वे कहते हैं, 'क्यों ऐसा ?' तब मुझे कहना पड़ता है, 'यह कपड़ा खींच रहे हो, तब कौन से ध्यान