________________
सहज प्राकृत शक्ति देवियाँ
दादाश्री : फिर भी उन फॉरेनर्स के पास लक्ष्मी जी आती हैं या नहीं! ऐसे क्या लक्ष्मी जी धोने से आती होंगी? दही में भी धोते हैं यहाँ हिन्दुस्तान में। लक्ष्मी जी को सभी धोते रहते हैं, और कोई भी कच्चा नहीं है। मुझे भी लोग कहने आते हैं कि, 'आपने लक्ष्मी जी को धोया या नहीं?' मैंने कहा, 'किसलिए? ये लक्ष्मी जी जब मिलती हैं, तब हम कह देते हैं कि, बड़ौदा में, मामा की पोल में, और छठा घर, जब अनुकूल आए तब पधारिएगा और जब जाना हो तब जाइएगा। आपका ही घर है। पधारिएगा,' इतना हम कहते हैं। हम विनय नहीं चूकते। हम वहाँ पर ऐसा नहीं कहते कि, 'हमें इसकी ज़रूरत नहीं है।'
लक्ष्मी जी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। कुछ साधु-महाराज वगैरह लक्ष्मी जी को देखकर 'नहीं-नहीं,' करते हैं। उससे उनके कितने ही जन्म लक्ष्मी के बिना भटक मरेंगे। तो मुए, लक्ष्मी जी का ऐसे तिरस्कार मत करना, नहीं तो छूने को भी नहीं मिलेंगी। तिरस्कार नहीं करते। किसी भी चीज़ का तिरस्कार किया जाए, ऐसा नहीं है। नहीं तो अगले जन्म में लक्ष्मी जी के दर्शन भी करने को नहीं मिलेंगे। यह जो लक्ष्मी जी का तिरस्कार करते हैं, वह तो व्यवहार को धक्का मारने जैसा है। यह तो व्यवहार है। इसलिए हम तो लक्ष्मी जी को आते हुए भी 'जय सच्चिदानंद' और जाते हुए भी 'जय सच्चिदानंद' करते हैं। यह घर आपका है, जब अनुकूल आए तब पधारिएगा,' ऐसी विनती करनी चाहिए। लक्ष्मी जी कहती हैं, 'ये सेठ लोग हमारे पीछे पड़े हैं, उससे उनके पैर छिल गए हैं। वे पीछे पड़ते हैं, तब दो-चार बार गिर जाते हैं, तब वापस मन में ऐसा भाव करते हैं कि अरे इसमें तो घुटने छिल जाते हैं, और इतने में तो हम फिर से इशारा करते हैं और फिर वह सेठ खड़ा होकर दौड़ने लगता है। यानी हमें उन्हें मारते रहना है। उन्हें सब तरफ से छीलकर लहू-लुहान कर देना है। उन्हें सूजन चढ़ी है, फिर भी समझ नहीं खुलती!' बहुत पक्की हैं लक्ष्मी जी तो!
कलिकाल की लक्ष्मी आज की लक्ष्मी ‘पापानुबंधी पुण्य' की है। इसलिए वह क्लेश