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आप्तवाणी-२
आधार पर सभी देवी-देवता रखे गए हैं। इसलिए कभी भी तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
जो मन-वचन-काया से किंचित् भी चोरी करे, तो उसे बहुत मेहनत करने पर भी मुश्किल से लक्ष्मी मिलेगी। लक्ष्मी प्राप्त होने में यह सबसे बड़ा अंतराय है-चोरी। यह तो क्या होता है कि मनुष्यपन में जो-जो मनुष्य की सिद्धियाँ लेकर आए होते हैं, उन सिद्धिओं को भुनाकर दिवालिये होते जाते हैं। आज प्रामाणिकता से बहुत मेहनत करके भी लक्ष्मी प्राप्त नहीं कर सकता, इसका अर्थ यह है कि पहले से ही मनुष्यपन की सिद्धि उल्टे प्रकार से भुनाकर ही आया है। उसका यह परिणाम है। सबसे बड़ी सिद्धि कौन सी? तब कहे, 'मनुष्यपन'। और वह भी ऊँची जाति में जन्म लेना और वह भी हिन्दुस्तान में। इसे सबसे बड़ी सिद्धि किसलिए कहा है? क्योंकि इस मनुष्यपन के माध्यम से ही मोक्ष में जाया जा सकता है!
जब तक कभी टेढ़ा धंधा शुरू नहीं हो, तब तक लक्ष्मी जी नहीं जाती। टेढ़ा रास्ता, वह लक्ष्मी जाने का निमित्त है!
यह काला धन कैसा कहलाता है, वह समझाऊँ। यदि बाढ़ का पानी अपने घर में घुस जाए तो अपने को खुशी होती है कि घर बैठे पानी आया। तो जब वह बाढ़ का पानी उतरेगा तब पानी तो चला जाएगा, और फिर जो कीचड़ रहेगा, उस कीचड़ को धोकर निकालते-निकालते तेरा दम निकल जाएगा। यह कालाधन बाढ़ के पानी की तरह है, वह रोम-रोम में काटकर जाएगा। इसलिए मुझे सेठों से कहना पड़ा कि, 'सावधानी से चलना।'
लक्ष्मी जी तो देवी हैं। व्यवहार में भगवान की पत्नी कहलाती हैं। यह सब तो पद्धति के अनुसार 'व्यवस्थित' है, लेकिन भीतर चल-विचल होने से गड़बड़ खड़ी होती है। भीतर चल-विचल नहीं होगा, तब लक्ष्मी जी बढ़ेगी। यह भीतर चल-विचल नहीं हो तो ऐसा नहीं होता कि, 'क्या होगा? क्या होगा?' ऐसा हुआ कि लक्ष्मी जी चलती बनेंगी।