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आप्तवाणी-२
दुकान पर बैठे-बैठे ग्राहक की राह देखता है, उसे भगवान ने आर्तध्यान कहा है!
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एक तरफ भगवान महावीर ने ४५ आगम कहे और एक तरफ चार शब्द कहे। इन दोनों का तौल समान बताया । चार शब्दों का जिसने ध्यान रखा, उसने इन सारे आगमों का ध्यान रखा। वे चार शब्द कौन से ? रौद्रध्यान, आर्तध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान ।
जगत् कैसा है? तेरा ग्राहक हो, तो तू सोलह के साढ़े सोलह कहेगा तो भी चला जानेवाला नहीं है और तेरा ग्राहक नहीं होगा तो तू पंद्रह कहेगा तो भी चला जाएगा । इतना भरोसा तो रख !
खुद, खुद की चिंता करे वह आर्तध्यान है । बेटी छोटी है, पैसे हैं नहीं, तो मैं क्या करूँगा? कैसे उसका विवाह करूँगा? वह आर्तध्यान । अभी तो बेटी छोटी है और भविष्य उलीच रहा है, वह है आर्तध्यान ।
यह तो घर पर नापसंद व्यक्ति आए और चार दिन रहनेवाला हो, तो अंदर होता है कि, ‘जाए तो अच्छा, मेरे यहाँ कहाँ से आ पड़ा?' वह सब आर्तध्यान और वापस 'यह नालायक है' ऐसी गालियाँ दे, वह रौद्रध्यान । आर्तध्यान और रौद्रध्यान करता हैं !
दूध शुद्ध हो और उसकी खीर बनानी हो तो उसमें भी नमक नहीं डालना चाहिए, लेकिन चीनी डालनी चाहिए । शुद्ध दूध में चीनी डालनी, वह धर्मध्यान। यह तो मेरे ही कर्म के दोष से, मेरी ही भूल से ये दुःख आ पड़ते हैं, वह सब धर्मध्यान में समाता है ।
भगवान महावीर के चार शब्द सीख गया तो दूसरी तरफ पैंतालीस आगम पढ़ लिए!
वीतरागों का सच्चा धर्मध्यान हो तो क्लेश मिट जाते हैं ।
धर्मध्यान किसे कहते हैं? किसी व्यक्ति ने हमारे लिए खराब किया तो उसकी तरफ किंचित् मात्र भी भाव नहीं बिगड़े और उसके प्रति क्या भाव रहे, ज्ञान का कैसा अवलंबन लें कि 'मेरे ही कर्मों के उदय से ये