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आप्तवाणी-२
हमारे यहाँ नियम नहीं हैं, लेकिन फिर साथ-साथ सामनेवाले के नियम हम नहीं तोड़ सकते। किसी का नियम तोड़ना, उससे तो सामनेवाले व्यक्ति को उल्टी अनुमोदना मिलती है, उसके हम निमित्त बनते हैं। अपने से ऐसा नहीं होना चाहिए। 'अपना' तो कोई नाम ही देनेवाला नहीं है। लेकिन इसके निमित्त बनें तो सामनेवाले की आदत पड़ जाएगी कि हम भी इस तरह से नियम तोड़ें, इसलिए अपने को संपूर्ण रूप से सामनेवाले के नियमों में रहना पड़ेगा।
हमारे यहाँ नियम नहीं होते, आज्ञा ही होती है। सभी रिलेटिव में नियम होते हैं। यहाँ पर नियम नहीं होते।