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आप्तवाणी-२
तैरकर पार उतर जाएगा। ठेठ मोक्ष तक पहुँचाएगा। हमारा एक ही वाक्य मोक्ष में ले जाए ऐसा है। 'ज्ञानीपुरुष' का एक ही वाक्य चाहिए। मोक्ष में जाने के लिए शास्त्र की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि 'ज्ञानीपुरुष' सीधा मोक्षमार्ग दिखा देते हैं, पूरा ही। इसलिए वस्तुस्थिति में समझने की ज़रूरत
है।
__ लोग कहते हैं कि हमें 'ज्ञान' है। 'ज्ञान' उसे नहीं कहते, 'ज्ञान' तो जो अमल में आए उसी को कहा जाता है। हमें बोरीवली का रास्ता मालूम है तो बोरीवली आना ही चाहिए। और यदि बोरीवली नहीं आए तो समझना कि बोरीवली के रास्ते का हमें ज्ञान ही नहीं था। भगवान के धर्मध्यान में इतना अधिक बल है, ग़ज़ब की ताक़त है! लेकिन जब तक वह धर्मध्यान को समझे नहीं, तब तक क्या कर सकता है?
और फिर वीतरागों ने कहा है कि, 'उदयकर्म से तू घबराना मत। पूरे दिन उदयकर्म तुझे परेशान करता रहे तो उससे भी तू घबराना मत। क्योंकि उसमें किसी का दोष नहीं है।'
चिंता, वही आर्तध्यान 'राई मात्र वध-घट नहीं, देख्या केवलज्ञान,
ते निश्चय कर छोड़ीने, तजिये आरतध्यान।' चिंता-विंता छोड़ दो। चिंता, वह आर्तध्यान है। यह शरीर शाताअशाता का जितना उदय लेकर आया है, उतना भोगे बिना कोई चारा ही नहीं है। इसलिए किसी का दोष मत देखना, किसी के दोष के प्रति दृष्टि मत करना और खुद के दोषों से ही बंधन है, ऐसा समझ जा। राईमात्र कम-ज़्यादा होनेवाला नहीं है। तुझ से कुछ परिवर्तन हो नहीं सकेगा इसलिए जय महावीर, जय महावीर, जय महावीर अथवा जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण करता रह न! भगवान की जय बुलवा। दूसरे लोगों की क्यों बुलवाता है? यह तो आप इस व्यक्ति को डाँट रहे हों और यह दूसरा व्यक्ति उसका बचाव करे तो पहला व्यक्ति इस दूसरे व्यक्ति की जय बुलवाता है। अरे, जय बुलवा महावीर की या कृष्ण की। आज तो