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आप्तवाणी - २
दादाश्री : १९४२ के बाद की लक्ष्मी टिकती नहीं है । यह जो लक्ष्मी है, वह पाप की लक्ष्मी है, इसलिए टिकती नहीं है । अभी के बाद के दोपाँच साल के बाद की लक्ष्मी टिकेगी। हम 'ज्ञानी' हैं, फिर भी लक्ष्मी आती है, इसके बावजूद टिकती नहीं । यह तो इन्कम टैक्स भरा जाए, उतनी लक्ष्मी आती है, यानी हो गया ।
प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी न टिके तो क्या करें?
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दादाश्री : लक्ष्मी तो टिके ऐसी है ही नहीं। लेकिन उसका रास्ता बदल देना है। उस रास्ते पर है, तो उसका प्रवाह बदल देना है और धर्म के रास्ते पर मोड़ देनी है । वह जितनी सन्मार्ग पर गई उतनी खरी । भगवान के आने के बाद लक्ष्मी जी टिकती हैं, उसके सिवा लक्ष्मी जी टिकें किस तरह? भगवान हों, वहाँ पर क्लेश नहीं होता और सिर्फ लक्ष्मी जी हों तो क्लेश और झगड़े होते हैं। लोग ढेरों लक्ष्मी कमाते हैं, लेकिन वह व्यर्थ जाती है । किसी पुण्यवान के हाथों ही लक्ष्मी अच्छे रास्ते खर्च होती है। लक्ष्मी अच्छे रास्ते खर्च हो, तो वह बहुत भारी पुण्य कहलाता है।
१९४२ के बाद की लक्ष्मी में कोई बरकत ही नहीं है । अभी लक्ष्मी यथार्थ जगह पर खर्च नहीं होती है । यथार्थ जगह पर खर्च हो तो बहुत अच्छा कहलाए। यहाँ अपने यहाँ तो अब मोक्ष की ही बात बची है।
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वणिक बुद्धिवाले तो लक्ष्मी जी की ट्रिक असल में समझ गए हैं कि जो कमाऊँगा, उसके आठवें भाग का भगवान में डाल दूँ, बाद में फिर उसकी फसल काटूंगा। तो भगवान भी यह लक्ष्मी जी प्राप्त करने की उनकी ट्रिक समझ गए हैं। भगवान क्या कहते हैं कि, 'तुम लक्ष्मी जी प्राप्त करते ही रहो, लेकिन मोक्ष नहीं मिलेगा तुम्हें ।'
लोगों की लक्ष्मी गटर में जाती है । पुण्य की कमाई संतपुरुषों के लिए जाती है
क्षत्रियों को कैसा है कि भगवान के वहाँ दर्शन करने जाएँ तो जेब में से जितने पैसे निकलें उतने डाल देता है। जबकि वणिक बुद्धिवालों