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आप्तवाणी-२
शास्त्रों की या पुस्तकों की सरस्वती, वह परोक्ष सरस्वती है। प्रत्यक्ष सरस्वती के दर्शन करने हों तो वह यहाँ हमारी वाणी सुने, तब हो जाते हैं!
यह सब बोला जा रहा है, लेकिन उसमें एक अक्षर भी 'मैं' नहीं बोलता हूँ, आपका पुण्य इन शब्दों को बुलवाता है। 'यह' जो वाणी निकलती है, उसके द्वारा 'हम' जान जाते हैं कि सामनेवाले का कैसा पुण्य है। 'हमारी' वाणी भी रिकॉर्ड है। इससे हमें क्या लेना-देना? फिर भी 'हमारी' रिकॉर्ड कैसी होती है? संपूर्ण स्यादवाद! किसी जीव को किंचित् मात्र भी दुःख नहीं हो, हर एक का प्रमाण (मान्यता, श्रद्धा) जिसे स्वीकार करे, ऐसी है 'यह' स्यादवाद वाणी।
सरस्वती की आराधना यानी क्या? वाणी का किसी भी तरह से अपव्यय नहीं हो और वाणी को उसके विभाविक स्वरूप में नहीं ले जाएँ, वह। यदि झूठ बोला तो वह कितना बड़ा विभाव है!
क्षत्रियों का वचन यानी वचन ही, वे अपना वचन नहीं बदलते। अभी मुंबई शहर में है ही नहीं न कोई! अरे! वचन का तो कहाँ गया, लेकिन यह दस्तावेज लिखा हुआ, हस्ताक्षर किया हुआ हो तब भी कहता है कि, 'हस्ताक्षर मेरे नहीं हैं' और सच्चा क्षत्रिय तो वचन बोला यानी कि
बोला।
ये चारण लोग फोटोवाली सरस्वती की भजना करते हैं, फिर भी उनकी वाणी कितनी ज़्यादा मीठी होती है!
लक्ष्मी जी प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी जी के नियम क्या हैं?
दादाश्री : लक्ष्मी जी गलत तरह से नहीं लेनी चाहिए, यह नियम है। इस नियम को यदि तोड़ें, तब फिर लक्ष्मी जी कहाँ से राज़ी रहेंगी? फिर तू लाख लक्ष्मी जी को धो न! सभी धोते हैं। वहाँ विलायत में क्या लोग लक्ष्मी जी को धोते हैं?
प्रश्नकर्ता : ना दादा, वहाँ तो कोई लक्ष्मी जी को नहीं धोता।