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आप्तवाणी-२
उसका तू भोक्ता बना। भोगने के लिए खुद का अनंत सुख है, लेकिन वह भोगता नहीं है। किस तरह भोगे? यह तो सब तरफ काँव-काँव मचा है। सब जगह कौए शोर मचाते हैं और दूसरी तरफ मुर्गे बोलते हैं!
जो विचारवान हो, वह तो लक्ष्य में रखता है कि यह संसार मार्ग आराधन करने जैसा है या आराधन करने जैसा नहीं है? आराधन करने जैसा नहीं हो तो 'ज्ञानीपुरुष' को ढूँढकर अनके पास से मोक्षमार्ग प्राप्त कर ले। सिर के बाल जितने अन्य मार्ग हैं ! उनमें एक ही पगडंडी है जो मोक्ष की पगडंडी है! और ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' जो समर्थ हों, सिर्फ वे ही बता सकते हैं! मोक्षमार्ग ओर्नामेन्टल नहीं होता और बाकी के सभी मार्ग ओर्नामेन्टल होते हैं, बड़ी-बड़ी गगनचुंबी होटलें होती हैं!