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आप्तवाणी-२
यहाँ आए हुए सभी लोग असरवाले ही होते हैं। किसी को पाँच प्रतिशत तो किसी को पच्चीस प्रतिशत होता है लेकिन एक ही प्रकार का इफेक्ट है। लेकिन साथ में पुण्य कैसा सुंदर लाए हैं। 'दादा' की लिफ्ट में बैठकर मोक्ष में जाना है! कोटि जन्मों के पुण्य जमा हों, तभी 'दादा' मिलते हैं! और फिर भले ही कैसा भी डिप्रेशन होगा, वह चला जाएगा। डिप्रेशन निकालने के लिए ही यह स्थान है। डिप्रेशनवालों के लिए, सभी प्रकार से फँसे हुओं के लिए 'यह' स्थान है। अपने यहाँ तो क्रोनिक रोग भी मिटे हैं। _ 'यह' हमारा ‘अक्रम मार्ग' पाँच सौ सालों बाद भी गाया जाएगा। इन कवि नवनीत के पदों की बाद में ग़ज़ब की क़ीमत होगी! अभी तो लोग गोल झूलों में चढ़े हुए हैं न! लोग फिर उसे ढूँढेंगे! झूले में बैठे हुए को कैसा दिखता है? ऐसे को, हम 'अक्रम मार्ग' दिखाएँ तो कहेगा, 'यह सब तो मैं जानता हूँ' और पूछे कि, 'भाई, तुझे चिंता-विंता होती है?' तो वह कहेगा कि, 'चिंता तो सभी को होती ही है न!' यदि चिंता होती है तो फिर तूने जाना क्या? जानने का नाम प्रकाश। उजाले में तो कहीं ठोकर लगती है? यह तो पग-पग पर ठोकर लगती है और कहता है कि 'मैं जानता हूँ,' तो तेरा कब हल आएगा? और वह भी 'ज्ञानीपुरुष' के सामने 'मैं जानता हँ'- का कैफ़ लेकर आए तो मैं कहूँ कि, 'भाई, तेरा घड़ा भरा हुआ है। उसमें मेरा अमृत डालने की क्या ज़रूरत है? डालूँगा, तो भी उसमें से छलककर नीचे गिर जाएगा। यदि तेरा घड़ा खाली हो, तभी मैं मेरा अमृत उसमें डालूँ और तब वह तेरे काम आएगा।'
प्रश्नकर्ता : दादा, आपके बाद यह 'अक्रम मार्ग' चलता रहेगा?
दादाश्री : 'अक्रम मार्ग' तो हमारे बाद एकाध-दो पीढ़ी तक टिकेगा। फिर तो वही का वही। लेकिन हमारे निमित्त से 'क्रमिक मार्ग' ऊँचे स्टेज पर आएगा। नये ही शास्त्र और नया ही सबकुछ होगा। जैसा अभी ऐसा बिगड़ा हुआ है, वैसा नहीं रहेगा।
यह तो 'अक्रम-मार्ग' है। इसलिए ज्ञानी सिर्फ एक घंटे में जगत्निष्ठा उठाकर ब्रह्म में बैठा देते हैं। इसीलिए तो कवि ने लिखा है न