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प्रकृति
अगर हमें कोई गलत काम करना हो, तब मन की हैल्प लें तो वह हमें चोर समझता है। अपना यदि प्रभाव हो तो घरवाले विरोध करते हैं या नहीं करते?
प्रश्नकर्ता : नहीं करते।
दादाश्री : वैसे ही मन पर अपना प्रभाव पड़ना चाहिए। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार सबके ऊपर अपना प्रभाव पड़ना चाहिए। अपने बोलने से पहले मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार पर, साँप जिस तरह मुरली बजते ही फन फैलाकर खड़ा रहता है, वैसा होना चाहिए, वैसा प्रभाव पड़ना चाहिए। वे सब परमाणुओं के बने हुए हैं। उन्हें भी बेचारों को कुछ शाता (सुख-परिणाम) चाहिए। प्रभाव से शाता उत्पन्न होती है। लेकिन यदि हम ही उनसे कोई गलत काम करवाएँ तो अपना प्रभाव टूट जाएगा।
___यह सब जो आप खाते हो, पीते हो, वह सब प्रकृति है। आत्मा है और अनात्मा है। उन दोनों के बीच प्रकृति है। दिखता चेतन है, लेकिन मूलतः स्वभाव से वह जड़ है, मिश्र चेतन है, 'सच्चा चेतन' नहीं है। इन साधु-सन्यासियों को यह चेतन जैसा दिखा, उसी को रियल चेतन मान लिया। लेकिन वह आत्मा नहीं है। वे जो मानते हैं, उसके उस पार रियल
चेतन है, 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाएँ, 'सर्वज्ञ' मिल जाएँ और वे जब प्रदान करें तब सच्चा आत्मा प्राप्त होता है। वर्ना, माने हुए आत्मा से क्रोध-मान-मायालोभ जाते नहीं हैं।
"प्रकृति का एक भी गुण 'शुद्ध चेतन' में नहीं है और 'शुद्ध चेतन' का एक भी गुण प्रकृति में नहीं है।"
यह सूत्र गहनता पूर्वक पूरी तरह से समझने जैसा है।