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अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य !
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'दस लाख वर्षमां आवा ज्ञान नथी थयां,
निश्चय ते विस्मय आवा ज्ञानी अकथ्या।' ऐसा कभी हुआ ही नहीं! इसीलिए तो आश्चर्य है न! और उसमें यदि मोक्ष की टिकट मिल गई, तो फिर उसका काम ही हो गया न! यह तो पुण्यशालियों के लिए है। अभी तो सास के कई चाबुक खाएगी, पति के चाबुक खाएगी, तब भी ठिकाना नहीं पड़ेगा! मोक्ष इतना आसान नहीं है! वह तो यहाँ पर उसको 'ज्ञानीपुरुष' मिल गए, इसलिए खिचड़ी बनाने से भी अधिक आसान हो गया है। मोक्षदाता 'ज्ञानीपुरुष' के निमित्त का तो शास्त्रकारों ने भी बखान किया है।
'हम' जगत् कल्याण के स्वामी नहीं हैं, निमित्त हैं। जो पुण्यशाली होते हैं, वे तो घर बैठे लाभ ले जाते हैं ! पुण्यशालियों का फल, यह 'अक्रम मार्ग' है ! वर्ना अक्रम तो होता होगा? यह तो बाद में जब इतिहास रचा जाएगा तब लोग पछताएँगे और सोचेंगे कि उस काल में मैं था या नहीं? फिर हिसाब निकालेंगे तो पता चलेगा कि उस दिन वह पैंतीस मंज़िल के फ्लेट बनाने के काम में पड़ा हुआ था! सभी संयोग मिल जाएँगे, लेकिन इस 'अक्रम ज्ञान' का संयोग मिले ऐसा नहीं है। यहाँ 'सत् संयोग' है। वह तो ज्ञान मिलने के बाद दूसरे ही दिन से उसे खुद को ही अनुभव होता है, तभी समझ में आता है।
___महावीर भगवान के निर्वाण को २५०० साल पूरे हो रहे हैं। तब साधन भी कैसे ग़ज़ब के प्रकट हो रहे हैं! वर्ना 'अक्रम मार्ग' तो कहीं होता होगा? भगवान के २५०० साल पूरे होंगे, तब साधन भी आ मिलेंगे
और यह परिवर्तन होगा। भगवान से कहा गया था कि, 'भस्मक ग्रह के असर में से लोगों को बचाने के लिए थोड़ा आयुष्य बढ़ाइए।' तब भगवान ने कहा था, 'नहीं, उसे तो लोग चैन से भोगेंगे और ठेठ अंतिम भ्रष्टाचार तक ले जाएँगे, और जब वह पूरा हो जाएगा तब उसका भी फल मिलेगा।' अब अभी वह विषम काल पूरा होनेवाला है। उसका फल 'अक्रम' आया है! वर्ना 'अक्रम' तो होता होगा?
कभी, किसी ही समय दस लाख सालों में ऐसे ग़ज़ब के पुरुष प्रकट