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आप्तवाणी-२
लेट है, तब आप आधा घंटा और बैठते हो। बाद में फिर खबर आए कि अभी और आधा घंटा लेट है, तो क्या असर होगा आप पर ?
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प्रश्नकर्ता : अंदर खीज होने लगती है और गालियाँ भी दे देता हूँ इन रेलवेवालों को!
दादाश्री : ज्ञान क्या कहता है कि गाड़ी लेट है, तो वह 'व्यवस्थित ' है। ‘अवस्था मात्र कुदरती रचना है जिसका कोई बाप भी रचनेवाला नहीं है, और वह व्यवस्थित है, ' आप सिर्फ इतना ही बोलो, तो इन ज्ञान के शब्दों के आधार पर सहज रह पाओगे । प्रकृति अनादिकाल से असहज कर रही है, तब ज्ञान के आधार पर उसे सहजता में लाना है । यह प्रकृति तो वास्तव में सहज ही है, लेकिन खुद के विभाविक भाव के कारण असहज हो जाती है । तो ज्ञान के आधार पर सहज स्वभाव में लानी है। रिलेटिव में दखलंदाज़ी गई, तो आत्मा सहज हो जाता है। यानी क्या कि खुद ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद पद में रहता है ।
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यह ज्ञान हाज़िर रहे, तब ट्रेन आधा-आधा घंटा करते हुए सारी रात निकाल दे न, तो भी क्या हमें परेशानी होगी? और अज्ञानी तो आधे घंटे में कितनी ही गालियाँ सुना देता है । वे गालियाँ क्या ट्रेन को पहुँचनेवाली हैं? गार्ड को पहुँचनेवाली हैं? नहीं। वह कीचड़ तो वह खुद, अपने आप पर ही उछाल रहा है। ज्ञान हो तो मुश्किल में मुश्किल को देखता है और सुगमता में सुगमता को देखता है, उस का नाम ही सहज आत्मा। हमारा यह ज्ञान ऐसा दिया है कि थोड़ा सा भी कंटाला (उकता जाना, चिढ़ जाना) न आए। फाँसी पर चढ़ना हो, फिर भी एतराज़ न हो । फाँसी पर चढ़ना है, वह तो ‘व्यवस्थित' है और रोकर भी चढ़ना तो है ही, तो फिर हँसकर किसलिए न चढ़े?
प्रकृति : स्वभाव से छुईमुई
प्रकृति का स्वभाव छुईमुई जैसा है। हाथ लगाने से तो पत्ते सकुचा जाते हैं। हम घर में किसी बच्चे से कहें कि, 'तुझसे तो मैं परेशान हो गया हूँ,' तो उसकी प्रकृति तुरंत ही सकुचा जाती है, छुईमुई की तरह । लेकिन
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