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आप्तवाणी-२
क्योंकि प्रकृति ऐसा मिश्रचेतन है। अपने बच्चे बड़े हों, सब को खूब परेशान कर दें वैसे हों, और ठगे जा सकें ऐसे नहीं हों, फिर भी वे आसानी से धोखा खा जाते हैं या नहीं? इसका क्या कारण है? 'यह प्रकृति है, इसे समझानेवाले चाहिए।'
प्रश्नकर्ता : कभी-कभी समझाने से काम नहीं होता। दादाश्री : उसका अर्थ यह है कि समझाना नहीं आता।
प्रश्नकर्ता : कई बार प्रकृति को समझाने से काम नहीं हो पाता, तब उसे उलाहना देना ही पड़ता है। उदाहरण के लिए, डॉक्टर ने दो ही पूरियाँ खाने को कहा हो, लेकिन आम का रास हो तब तो प्रकृति कहेगी कि तीन खा। तब उसे समझाए तो वह नहीं मानती, तब उसे उलाहना देना ही पड़ता है। उस समय बहला-फुसलाकर नहीं हो पाता, हठ करनी पड़ती
है।
दादाश्री : ऐसा है न, यदि समझाना आए तब तो बहुत ही अच्छा है। वह नहीं आता हो, तो उलाहना देना। लेकिन वह सेकन्डरी स्टेज कहलाती है। लेकिन वह देह की बात में चलता है, मन के बात में उलाहना देना अच्छा नहीं ही है। देह तो ज़रा जड़ है और उलाहना दें तो हर्ज नहीं। मूलतः जड़ स्वभाव की है और मन को तो समझाना पड़ता है।
देह को भी यदि समझाना आए तो समझाना अच्छा। देह भी मेरा कहा हुआ तो मानती है।
प्रश्नकर्ता : उसमें भी दादा, प्रकृति जितनी सहज हो गई है, वह उतनी ही आसानी से वह मान जाएगी, ऐसा ठीक है?
दादाश्री : हाँ, वह बात सही है। ये सब परमाणु क्या कहते हैं? चेतन भाव को प्राप्त हैं, इसलिए वे कहते हैं कि हम आपका उलाहना सुनने नहीं आए हैं। उलाहना देने का फल आपको तुरंत ही मिल जाएगा। यह सब साइन्स है!
प्रश्नकर्ता : मैं पहले जब जैन साधुओं के साथ में था तब मेरे आहार