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प्रकृति
उसे फिर से कहना चाहिए कि, 'ना भाई, मैं तो सचमुच में तुझसे परेशान नहीं हुआ हूँ।' इससे उसकी प्रकृति सकुचाएगी नहीं।
हम थक गए हों, फिर भी ऐसा नहीं बोलना चाहिए कि, 'मैं थक गया हूँ,' नहीं तो अपनी प्रकृति सकुचा जाएगी। प्रकृति का स्वभाव लजीला है। अधिक खा लिया हो और अजीर्ण जैसा लगे तो बोलना नहीं चाहिए कि अजीर्ण जैसा हो गया है। नहीं तो प्रकृति सकुचा जाती है। हमें तो बोलना चाहिए कि, 'ना बाबा, अच्छी तरह पच गया है!'
पति वाइफ से ऊब जाए तो बोल देता है कि, 'तुझसे तो मेरा दिमाग़ खिसक जाता है। लेकिन तुरंत ही हमें अंदर बोलना पड़ेगा कि, 'ना भाई, जिनका दिमाग़ खिसके-विसके वे दूसरे, तुझसे तो मुझे कुछ भी नहीं हुआ है।' ताकि अपनी प्रकृति सकुचाए नहीं। वर्ना प्रकृति क्या कहेगी कि, 'आप बीच में अक्लमंदी करनेवाले कौन?' इसलिए हमें सीधा बोलना है।
प्रकृति पलटे समझ से यह ज्ञान मिला है, इसलिए अब एक क्षण के लिए भी प्रमाद का सेवन करने जैसा नहीं है। उसे डाँटना नहीं है, उलाहना नहीं देना है। उसे कहें कि, तुझे जो भी खाना है वे सभी चीजें तुझे सप्लाई करेंगे, लेकिन तू इतना हमारा मान। देह से कहें कि तू इतना हमारा मान। इगोइज़म बहुत उछलकूद कर रहा हो तो उसे कहें कि, 'मेरा इतना मान।'
प्रश्नकर्ता : यदि उसके विरोधी बन जाएँ तो, दादा? उसका विरोध करें तो क्या होगा?
दादाश्री : ना, प्रकृति का विरोध करें तो वह भी विरोध करेगी। ऐसा तो उसे चाहिए ही। ऐसा तो उसे चाहिए ही कि विरोध करें और लपेट में ले लूँ। हमें विरोध नहीं करना है। हमें तो उसे समझा-पटाकर काम लेना है। और आखिर उसकी तो बालक अवस्था है। यह प्रकृति भले ही कितनी भी बड़ी हो, फिर भी उसकी बालक अवस्था है। कब उल्टा कर डाले, छोटे बालक जैसा कर डाले, वह कहा नहीं जा सकता! वह