________________
अक्रममार्ग : ग्यारहवाँ आश्चर्य!
है।' हमें तो कैफ़ नहीं चढ़ता लेकिन उनका कैफ़ बढ़ जाता है इसलिए हम अकारण नहीं जाते, नहीं तो उनका रोग बढ़ता है।
ऋषभदेव भगवान के समय से अभी तक 'क्रमिक मार्ग' के ज्ञानी हों, उनके दो या तीन शिष्य होते थे। वे तीन शिष्यों को सँभालते थे और खुद तप-त्याग करते थे और उन शिष्यों से भी करवाते थे। तीन से अधिक नहीं होते थे, ऐसा इतिहास कहता है। जबकि इन पुण्यानुबंधी पुण्यशालियों के लिए दस लाख सालों के बाद भी ऐसा मार्ग निकलता है न! प्रत्यक्ष के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। 'वीतराग विज्ञान प्रत्यक्ष के बिना काम आए ऐसा नहीं है। और यह तो 'अक्रम विज्ञान है, उसमें तो केश डिपार्टमेन्ट है, केश बैंक और क्रमिक में तो त्याग करता है, लेकिन केश फल नहीं आता और यह तो केश फल!
ऐसा ज्ञान इन साढ़े तीन अरब की आबादी में किसे नहीं चाहिए? सभी को चाहिए। लेकिन यह ज्ञान सबके लिए नहीं है। यह तो महापुण्यशालियों के लिए है। यह 'अक्रम ज्ञान' प्रकट हुआ, उसमें लोगों के कुछ पुण्य होंगे न? एक सिर्फ भगवान पर आश्रयवाले, भटकते भक्तों के लिए और जिनके पुण्य होंगे न, उनके लिए यह मार्ग प्रकट हुआ है। यह तो बहुत पुण्यशालियों के लिए है और यहाँ पर जो सहज ही आ जाएँ
और सच्ची भावना से माँगे, उन्हें दे देते हैं। लेकिन लोगों को इसके लिए कुछ कहने जाना नहीं पड़ता। इन 'दादा' की और उनके महात्माओं की हवा से ही जगत् कल्याण हो जाएगा। मैं निमित्त हूँ, कर्ता नहीं हूँ। यहाँ तो जिसे भावना हुई और 'दादा' के दर्शन किए तो वह दर्शन 'ठेठ' को पहुँचते हैं। 'दादा' इस देह के नज़दीकी पड़ोसी की तरह रहते हैं और यह बोलता है, वह रिकॉर्ड है। यह 'अक्रम ज्ञान' तो जो कुछ ही बहुत पुण्यशाली लोग होंगे उनके लिए है। अन्य सभी के लिए 'अक्रम मोक्ष' नहीं है। अन्य सभी लोगों के लिए तो उसके 'क्रमिक मार्ग' का बोध देकर, वह जो करता हो, उसी में उसे सुगम रास्ता दिखाऊँगा। उससे वह ठेठ तक पहुँच जाएगा! यहाँ तो जो सहज रूप से आ जाए और अपने पुण्य का पासपोर्ट ले आए, उसे हम ज्ञान दे देते हैं। जो 'दादा' की कृपा प्राप्त कर गया, उसका काम हो गया!