________________
४०
आप्तवाणी-२
निकलें, उतने ही सत्धर्म। जो मोक्ष दिलाए, वही सत्धर्म है। बाकी सब तो आरोपित धर्म कहलाते हैं। सत्धर्म कैसा होता है? सत् और असत् को निरंतर अलग ही रखे, वह। और आरोपित धर्म में तो शुभाशुभ होता है। ऐसा करो और वैसा करो, जप करो और तप करो, फलाँ करो। हम पूछे कि 'आरोपित क्यों करवा रहे हो? आत्मा का करवाओ न?' तो वे कहेंगे कि, 'आत्मा का तो आत्मा प्राप्त होने के बाद ही करना होता है। अभी तो यह करो,' ऐसा कहेंगे।
हम पूछे कि, 'ये सत्देव हैं?' अरे! नहीं हैं ये सत्देव। सभी इस आरोपित देव को सत्देव मान बैठे हैं। पूरी बात ही आरोपित हैं!
सच्चे सत्देव, सत्धर्म और सद्गुरु मिल जाएँ तो काम हो जाएगा! एक घंटा ही मिल जाएँ, तो भी काम निकाल दें। एक घंटा ही यदि ये तीन चीजें मिल जाएँ, तो ठेठ तक का काम निकाल दें!