________________
३४
आप्तवाणी-२
अनंत जन्मों का सार यह है! फिर भी अनुभव बेकार नहीं जाते, वे तो कभी काम आते हैं। एक बार गड्ढे में गिरा, उसके बाद गड्ढा आए तो वह अनुभव तुरंत ही चेतावनी देता है। अनुभव तो उपदेश देकर जाता है।
इसमें से तो काम निकालकर मोक्ष में जाना है। यह देह ही 'अपनी' नहीं हुई, तो और कोई अपना कैसे हो सकेगा? यह देह यदि ज्ञानी के काम में आई, तो सगी है, और संसार के काम में गई, तो वह दगा है। ये सब देह के सगे हैं। आत्मा का कोई सगा नहीं है। आत्मा का सगा होता ही नहीं है। इसलिए यह बात समझ लेनी है। वीतराग समझकर बैठे हैं कि इसमें 'अपना' काम नहीं है। उन्हें यह दगा-वगा पसंद नहीं है। हमें भी उसे पूरा-पूरा समझकर अपना काम निकाल लेना है।
जगत् छह तत्वों में से उत्पन्न हुआ है। संसार छह तत्वों का प्रदर्शन है! और इन तत्वों का निरंतर परिवर्तन होता रहता है और उन तत्वों का मिलन होने से संसार है। तत्व 'सत्' स्वरूप से हैं। 'सत्' यानी गुण और अवस्था सहित होता है, ये जो दिखती हैं, वे विभाविक अवस्थाएँ हैं, प्राकृत अवस्थाएँ उत्पन्न हुई हैं। इन विभाविक अवस्थाओं में भ्रांति खड़ी हो गई है कि यह 'मैं हूँ,' उसी से यह सब खड़ा है, बाकी का कुछ भी बिगड़ा नहीं हैं। तत्वों के मिलन से उत्पन्न हुआ है। जड़ और चेतन के संयोग संबंध मात्र से चल रहा है, जड़ और चेतन मिक्सचर के रूप में हैं, कम्पाउन्ड के रूप में नहीं हैं।
__बोझा सिर पर या घोड़े पर? एक बार मैं अचानक अपने मित्र के घर पहुँच गया था। वे अपनी पत्नी के साथ बातचीत कर रहे थे। मेरे मित्र ने अपनी पत्नी से पूछा, 'क्या सब्जी लाई है?' पत्नी ने कहा, 'भिंडी।' मित्र ने पूछा, 'किस भाव से लाई है?' पत्नी ने कहा, 'बारह आने किलो के भाव से।' मित्र ने पूछा, 'इतनी महँगी सब्जी लाई जाती होगी? तुझे कुछ अक़्ल-बल्ल है या नहीं?' अब यह मेरे सुनने में आया। मैंने उससे कहा, 'क्यों यह सिर पर दो मन का वजन लेकर फिर रहे हो?' आपका मुँह अरंडी का तेल पीया हो, ऐसा