________________
संसार स्वरूप : वैराग्य स्वरूप
पूरे दिन कड़वा पिलाते हैं और एक पाव मीठा पिलाते हैं, इससे तो पूरा ही कड़वा नहीं पी लें हम? यह तो हमें मूर्ख बना जाते हैं तो कैसे पुसाए? आधा दु:ख हो और आधा सुख हो, पचास-पचास प्रतिशत हो, तब भी चलेगा। तब हमने यहाँ तक कहा है कि पचपन प्रतिशत दुःख और पैंतालीस प्रतिशत सुख होगा तब भी चलेगा। लेकिन इतना कहा और दुःख तो बढ़ने लगा और पाँच प्रतिशत सुख और पँचानवे प्रतिशत दु:ख हो गया, यानी चटनी जितना ही सुख मिलता है, ऐसा लालच हमें नहीं पुसाएगा। भीतर असीम सुख पड़ा है। यदि बाहर का मच्छर तक याद नहीं आए न, तो 'वह सुख' बरतता ही रहेगा। यह तो बाहर की याद सुख छीन लेती है।
यह काल विचित्र है, यह तो करेले मीठे हो जाएँ, उस जैसा है! यह तो हर एक में भगवान के दर्शन करके पैकिंग से दूर ही रहने जैसा है। भले ही कितना भी सड़ा हुआ पैकिंग हो, लेकिन भगवान के दर्शन करके दूर रहने जैसा है, और हीरे का पैकिंग हो, तब भी वह पैकिंग कल चिता में जल जानेवाला है। लोग कहते हैं कि ये इंसान देवता जैसे लगते थे, लेकिन वे भी चिता में ही जाते हैं। कदाचित् जलाने के लिए चंदन की लकड़ियाँ मिलें। मरने के बाद उस देवता जैसे इंसान के साथ सो जाने को कहें, तो वह मना करेगा। भीतर भगवान बैठे थे, वे स्व-पर प्रकाशक हैं और उसी से उसका रूप था!
ये स्त्रियाँ बालों में फूल किसलिए डालती होंगी! शरीर की बदबू उड़ जाए, इसलिए। इस कलियुग में सिर, शरीर गंध मारते हैं, इसलिए ही तो वे फूल पहनती हैं, उनकी सुगंध आती है। पहले तो पद्मिनी स्त्रियाँ होती थीं, वे रसोईघर में खाना बनाती हों, तब भी यहाँ बैठे उनकी सुगंध आती थी! वे भी भोजन करती थीं और ये भी भोजन करती हैं। पहले के पुरुषों में सुगंध नहीं आती थी, लेकिन दुर्गंध तो आती ही नहीं थी। आज तो 'बाँद्रा की खाड़ी जैसा' हो गया है! आज तो अत्याधिक सेंट और इत्र उड़ते हैं। यह किसके जैसा है कि बदबूदार आम को सुगंध चुपड़कर फिर उसे खाएँ। ऐसे तो लोग हो चुके हैं ! इसे भगवान ने कहा है कि 'अभोग्य भोक्ता।' यानी कि जो आत्मा को भोगने के लिए अयोग्य है,