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संसार स्वरूप : वैराग्य स्वरूप
सेठ कहे कि हम क्या करें? हमें तो जायदाद बेटे को देनी है । चार सौ बीसी करके कमाई की और वह कमाई भी फिर परदेस में की और फिर बेटे को देगा? बेटा तो रिलेशनवाला हैं, रिलेटिव संबंध और फिर अहंकारी। कोई साक्षात् संबंध हो, रियल संबंध हो और कमाई करके दे रहा हो, तब तो अच्छा है। यह तो समाज के कारण दबाव में आकर ही संबंध बचा है और उसमें भी कभी बाप-बेटा लड़ते हैं, झगड़ते हैं और ऊपर से कोर्ट में दावा करते हैं। कुछ बेटे तो कहते हैं कि बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ आना है! जैसे इस बैल को पशुशाला में नहीं छोड़ आते? वैसे ही बूढ़ों का घर ! कैसा सुंदर नाम निकाला है ! इस सगाई में क्यों बैठे हुए हो, वही मुझे समझ में नहीं आता। यदि इस रिलेटिव संबंध में अहंकार नहीं हो, तब तो वह चला लेने जैसा संबंध है । आप क्या नहीं जानते कि बाप को कैद में डालकर राजगद्दियाँ ले ली थीं !
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सारा जगत् घानी जैसा है । पुरुष बैल की जगह पर हैं और स्त्रियाँ तेली की जगह पर हैं । उसमें तेली गाता है और यहाँ स्त्री गाती है, और बैल आँख पर पट्टियाँ बाँधकर अपनी धुन में चलता है। वह समझता है कि काशी तक पहुँच गया होऊँगा ! जब पट्टियाँ खोलकर देखे तो भाई वहीं के वहीं! और फिर जब तेली बैल को खली का टुकड़ा खिलाता है तो बैल खुश। वैसे ही इसमें जब पत्नी हाँडवे (गुजराती व्यंजन) का टुकड़ा दे दे, तब भाई आराम से सो जाता है !
अस्पताल में जाए तो उसका मोह उतर जाए। लेकिन वह लक्ष्य में नहीं लेता, नहीं तो अभाव आ जाएगा। अगर मुँह पर एक फुंसी हो गई हो न, तो भी देखना अच्छा नहीं लगता। घूमने जाए तो भी कहेगा कि ‘ये लोग देखेंगे तो कैसा लगेगा?' ये सब आम ही हैं न? वे झुर्रियाँ पड़ने के बाद अच्छे नहीं लगते। इन लोगों को मैं आम कहता हूँ, क्योंकि वे सड़ जाते हैं, जिनमें झुर्रियाँ पड़े वे सब आम ही हैं ! इन आमों पर यदि झुर्रियाँ नहीं पड़ती हों न और वैसे के वैसे ही रहें तो काम के, लेकिन यह तो, जब से आम लाएँ उसी घड़ी से झुर्रियाँ पड़नी शुरू हो जाती हैं ये चाचा-चाची हैं, वे शादी करके आए थे तब कितने सुंदर दिखते थे और
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