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आप्तवाणी-२
यह तो अगर खाट में मरणासन्न पड़ा हो, तब भी छोटी बेटी की चिंता करता है कि इसकी शादी करनी रह गई। उस चिंता में और चिंता में ही मर जाता है, इसलिए फिर जानवर बनता है। जानवर का जन्म दुत्कार से भरपूर है। लेकिन मनुष्य जन्म में भी सीधा नहीं रहे, तब फिर क्या हो? 'ज्ञानीपुरुष' तो कहते हैं कि 'माँग, माँगे वह दूँ' लेकिन ठीक से माँगता भी नहीं।
स्टीमर डूब रहा हो, तब पहले से उसका पता चल जाता है। इसीलिए जब सभी को नावों में उतार रहे हों, तब वह बूढ़ा जल्दबाज़ी करता है। लेकिन तू तो मरने को है, अब बच्चों को पहले उतरने दे न!
लोग समझते हैं कि यह दुनिया सुंदर है! ना, यह तो मरने का कारखाना है। बैंगन बूढ़े हो जाएँ, यानी मरनेवाले ही हैं। यह तो जितना काम निकाल ले उतना खुद का!
यह पालघर का स्टेशन आए, तब कोई बिस्तर बिछाए तो लोग क्या कहेंगे? पागल ही कहेंगे न? मुंबई नज़दीक आया और बिस्तर बिछा रहा है? वह तो मूर्ख ही कहलाएगा। कितने तो, जब बोरीवली आए, तब ताश खेलने बैठ जाते हैं। अब तो उठ, यह अंतिम स्टेशन नज़दीक आया। तो अब बिस्तर बाँधने लग न? अब तो चेत। जितना सचेत हुआ, उतना उसके बाप का।
निरा भयवाला है यह संसार, घिन से कँपकँपी छूटे ऐसा और वह भी फिर निरंतर! उसमें लोगों को राग किस तरह आता है, वह भी आश्चर्य है न?
___ यह तो मोह या मार? यह मोह किसके ऊपर? झूठे सोने पर? सच्चा हो तो मोह रखा जाए। यह तो ग्राहक-व्यापारी जैसा संबंध है। माल अच्छा मिले तो ग्राहक पैसा देता है, ऐसा यह संबंध है। यदि एक ही घंटा पति के साथ झगड़ा करे तो संबंध टूट जाता है, ऐसे संबंध में मोह क्या रखना?