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वस्त्रकथा, शयनकथा, मालाकथा, गन्धकथा, ज्ञातिकथा, यानकथा, ग्रामकथा, निगमकथा, नगरकथा, जनपदकथा, स्त्रीकथा आदि।६६ प्रस्तुत समवाय में चार विकथाओं का उल्लेख है। स्थानांग में एक एक विकथा के चार-चार प्रकार भी बताये हैं। और सातवें स्थान में६८ सात विकथाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता है।
विकथाओं के पश्चात् चार संज्ञाओं का उल्लेख है। सामान्यतः अभिलाषा को संज्ञा कहते हैं। दूसरे शब्दों में आसक्ति संज्ञा है। यहाँ पर संज्ञा के चार भेदों का निरूपण है। स्थानांगसूत्र में एक-एक संज्ञा के उत्पन्न होने के चार-चार कारण भी बताये हैं। दशवें स्थान६६ में संज्ञा के दश प्रकार भी बताये हैं। बन्ध के चार प्रकारों के सम्बन्ध में हम पूर्व में लिख ही चुके हैं। इस तरह चतुर्थ समवाय में चिन्तन की विपुल सामग्री विद्यमान है। पांचवाँ समवाय : एक विश्लेषण
___ पांचवें समवाय में पांच क्रिया, पाँच महाव्रत, पांच कामगुण, पांच आश्रवद्वार, पांच संवरद्वार, पांच निर्जरास्थान, पांच समिति, पांच अस्तिकाय, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, विशाखा, धनिष्ठा नक्षत्रों के पांच-पांच तारे, नारकों और देवों की पांच पल्योपम और पांच सागरोपम की स्थिति तथा पांच भव कर मोक्ष जाने वाले भवसिद्धिक जीवों का उल्लेख है।
सर्वप्रथम क्रियाओं का उल्लेख है। क्रिया का अर्थ "करण" और "व्यापार" है। कर्मबन्ध में कारण बनने वाली चेष्टाएं"क्रिया" हैं। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि मन, वचन और काया के दुष्ट व्यापार-विशेष को क्रिया कहते हैं। क्रिया कर्म-बन्ध की मूल है। वह संसार-जन्ममरण की जननी है। जिससे कर्म का आश्रव होता है, ऐसी प्रवृत्ति क्रिया कहलाती है। स्थानांगसूत्र में भी क्रिया के जीव-क्रिया, अजीव क्रिया और फिर जीव-अजीव क्रिया के भेद-प्रभेदों की चर्चा है। यहां पर मुख्य रूप से पाँच क्रियाओं का उल्लेख है। प्रज्ञापनासूत्र में पच्चीस क्रियाओं का भी वर्णन मिलता है। जिज्ञासु को वे प्रकरण देखने चाहिए। क्रियाओं से मुक्त होने के लिए महाव्रतों का निरूपण है।
महाव्रत श्रमणाचार के मूल हैं। आगम साहित्य में महाव्रतों के सम्बन्ध में विस्तार से विश्लेषण किया गया है। आगमों में महाव्रतों की तीन परम्पराएँ मिलती हैं। आचारांग७२ में अहिंसा, सत्य, बहिद्धादान इन तीन महाव्रतों का उल्लेख प्राप्त होता है। स्थानांग७३, उत्तराध्ययन और दीघनिकाय५ में चार याम का वर्णन है। वे ये हैं - अहिंसा, सत्य, अचौर्य और बहिद्धादान। बौद्ध साहित्य में अनेक स्थलों पर चातुर्याम का उल्लेख हुआ है। प्रश्नव्याकरण के संवर प्रकरण में महाव्रतों की चर्चा है। दशवैकालिकसूत्र७७ में प्रत्येक महाव्रत का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
६६. ६७. ६८. ६९. ७०.
अंगुत्तरनिकाय १०-६९ स्थानांगसूत्र, चतुर्थ स्थान, सूत्र २८२ स्थानांग, स्था. ४, सूत्र ५६९ स्थानांग, स्था. १०, सूत्र-७५१ स्थानांगसूत्र-२१, ५२ प्रज्ञापनासूत्र-२२ आचारांग ८/१५ स्थानाङ्ग २६६ उत्तराध्ययन २३/२३ दीघनिकाय प्रश्नव्याकरणसूत्र-६/१० दंशवैकालिकसूत्र, अ. ४
७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७.
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