Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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[६] विषय
पृष्ठाङ्क नहीं किया । तथा भगवान्ने पापकारण सदोष अन्नादिकको
स्वीकार नहीं करते हुए प्रासुक आहारका सेवन किया। ५५६ ३८ उन्नीसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया।
५५६-५५७ ३९ उन भगवानने दूसरोंके वस्त्रका कभी भी सेवन नहीं किया,
दूसरेके पात्रमें भी उन्होंने भोजन नहीं किया। भगवान् अपमानकी गणना नहीं करके आहार बनने के स्थानमें आहारके निमित्त जाते थे।
५५७ बीसवीं गाथाका अवतरण, गाथा और छाया। भगवान् अशनपानके मात्राज्ञ थे, वे कभी भी मधुगदिरसोंमें आसक्त नहीं हुए। भगवान् सर्वदा अप्रतिज्ञ रहे। उन्हों ने आखें कभी भी, नहीं धोयीं, और न उन्हों ने कभी शरीर
को खजुआया। ४२ इक्कीसवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया।
५५९ ४३ भगवान् मार्ग में चलते हुए न अपनी दृष्टि को तिरछी करते
थे और न पीछे की ओर वे दृष्टिपात करते थे, कोई कुछ पूछता था तो कोई उत्तर भी नहीं देते थे, किन्तु आगे की ओर अपने शरीरप्रमाण भूमि को देखते हुए यतनापूर्वक विहार करते थे।
५५९ ४४ बाईसवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया।
५५९ ४५ मार्गमें चलते हुए भगवान् महावीर शिशिर ऋतुमें वस्त्र छोड़
कर, दोनों बाहुओं को कन्धों पर नहीं रख कर किन्तु दोनों बाहुओं को पसार कर परीषह और उपसर्गों को सहने के लिये यत्न करते थे।
५६० ४६ तेईसवीं गाथा का अवतरण, गाथा और छाया।
५६० ४७ भगवानने इस प्रकार का आचार का सेवन किया। उन्होंने
यह आचार इसलिये पाला कि दूसरे मुनि भी इसी तरह आचार कापालन करे । उद्देश समाप्ति ।
५६०-५६१ ॥ इति प्रथम उद्देश संपूर्ण ॥
श्री आय॥२२॥ सूत्र : 3