Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
रूप नहीं लेता, अर्थात् ज्ञान के अनुरूप जीवन के प्रवाह को नया मोड़ नहीं दिया जाता, तब तक मुक्ति के मार्ग को जानते - पहचानते हुए भी वह ( आत्मा ) उसे तय नहीं कर पाता है। अतः अपवर्ग- मोक्ष की ओर बढ़ने के लिए ज्ञान और क्रिया दोनों के समन्वय की आवश्यकता है । इसी बात को सूत्रकार ने 'परिज्ञा' शब्द से स्पष्ट किया है।
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इस तरह शस्त्रपरिज्ञा का अर्थ हुआ - द्रव्य और भाव शस्त्रों की भयंकरता को जान-समझ कर उसका परित्याग करना, अर्थात् शस्त्र - रहित बन जाना । वस्तुतः संसार-परिभ्रमण एवं अशान्ति का मूल कारण शस्त्र ही है । सब तरह के दुःख- दैन्य एवं विपत्तियाँ अस्त्र-शस्त्रों की ही देन हैं। भगवान महावीर की इस बात को आज के वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं । शस्त्रों की शक्ति पर विश्वास रखने वाले राजनेताओं का विश्वास भी लड़खड़ाने लगा है। वे भी इस तरह की भाषा का प्रयोग करने लगे हैं कि विश्वशान्ति के लिए जल, स्थल एवं हवाई सभी तरह की सेनाओं के केन्द्र हटा देने तथा सभी तरह के बम्बों, राकेटों एवं आणविक शस्त्रों को समाप्त करने पर ही विश्व शान्ति का सांस ले सकेगा । वस्तुतः सत्य भी यही है । शस्त्र शान्ति के लिए भयानक खतरा है । अतः अनन्त शान्ति की ओर बढ़ने वाले साधक को सबसे पहले शस्त्रों का परित्याग करना चाहिए। इसी अपेक्षा से सभी तीर्थंकर अपने प्रथम प्रवचन में शस्त्र - त्याग की बात कहते हैं । इस तरह पहले अध्ययन में शस्त्रों के त्याग की बात कही गई है, यदि आज की भाषा में कहूं तो निश्शस्त्रीकरण - शस्त्ररहित होने का मार्ग बताया गया है ।
प्रस्तुत अध्ययन सात उद्देशकों में विभक्त है । सातों उद्देशकों में विभिन्न तरह से छह काय के जीवों की हिंसा एवं हिंसाजन्य शस्त्रास्त्रों से होने वाले नुकसान का एक सजीव शब्द-चित्र चित्रित किया गया है। यहां हम अधिक विस्तार में न जाकर प्रस्तुत अध्ययन के प्रथम उद्देशक पर विचार करेंगे। प्रस्तुत उद्देशक में आत्मा एवं कर्म-बन्ध के हेतुओं के सम्बन्ध में सोचा - विचारा गया है। इस उद्देशक को प्रारम्भ करते हुए सूत्रकार ने - “सुयं मे आउसं!...” इत्यादि सूत्र का उच्चारण किया है।
वर्तमान में उपलब्ध आगम- साहित्य आर्य सुधर्मा स्वामी और श्री जम्बूस्वामी इन दोनों महापुरुषों के संवाद रूप में है । आगम की विश्लेषण पद्धति से यह स्पष्ट