________________
एक परिशीलन
इस प्रक्रिया से उसे अनन्त सुख मिलता है, फिर भी वह उसमें प्राबद्ध नहीं होता है। ___ इस अभ्यास के पश्चात् योगी निर्वाण-मार्ग में प्रविष्ट होता है। इसके अभ्यास के लिए वह अनित्यता का चिन्तन करता है । अनित्यता से वैराग्य का अनुभव होता है और इससे समस्त वृत्तियाँ एवं मनोभावनाएं विलीन हो जाती हैं और योगी निर्वाण-पद को प्राप्त कर लेता है।
- बौद्ध साहित्य में समाधि एवं निर्वाण प्राप्त करने के लिए ध्यान के साथ अनित्य भावना को भी महत्व दिया गया है। तथागत बुद्ध अपने शिष्यों से कहते हैं- "हे भिक्षुमो ! रूप अनित्य है, वेदना अनित्य है, संज्ञा अनित्य है, संस्कार अनित्य है, विज्ञान प्रनित्य है । जो प्रनित्य है, वह दुःखप्रद है। जो दुःखप्रद है, वह अनात्मक है । जो अनात्मक हैं, वह मेरा नहीं है, वह मैं नहीं हूँ। इस तरह संसार के अनित्य स्वरूप को देखना चाहिए। क्योंकि 'यवनिच्चं तं दुक्लं" जो अनित्य है वह दुःख रूप है।" ___ जैन विचारकों ने भी प्रनित्य भावना के चिन्तन को महत्व दिया है। भरत चक्रवर्ती ने इस अनित्य भावना के द्वारा ही चक्रवर्ती वैभव भोगते हुए केवल-ज्ञान को प्राप्त किया था। प्राचार्य हेमचन्द्र ने भी भनित्य भावना का यही स्वरूप बताया है-"इस संसार के समस्त पदार्थ अनित्य हैं। प्रातःकाल जिसे देखते हैं, वह मध्याह्न में दिखाई नहीं देता और मध्याह्न में जो दृष्टिगोचर होता है, वह रात्रि में नजर नहीं पाता।"१ ध्यान पर तुलनात्मक विचार
बौद्ध साहित्य में योग-साधना के लिए 'ध्यान' एवं 'समाधि' शब्द का १. देखें योग-शास्त्र (प्राचार्य हेमचन्द्र), प्रकाश , श्लोक ५७-६०. .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org