________________
एक परिशीलन
३५
'विचार' शब्द विभिन्न प्रथों में प्रयुक्त हुए हैं। संप्रज्ञात के साथ प्रयुक्त वितर्क पद का अर्थ-स्थूल विषय का साक्षात्कार किया गया है और समापत्ति के साथ प्रयुक्त 'वितर्क' शब्द का अर्थ किया गया है— शब्द, प्रर्य और ज्ञान का प्रभेदाध्यास या विकल्प । इसी तरह संप्रज्ञात के साथ भाए हुए विचार का अर्थ है- सूक्ष्म विषयक साक्षात्कार और समापत्ति के साथ प्रयुक्त विचार शब्द का अर्थ है - देश, काल और धर्म से अवच्छिन्न सूक्ष्म पदार्थ का साक्षात्कार ।
ata परम्परा में 'वितर्क' और 'विचार' दोनों शब्दों का प्रयोग हुना है । उसमें वितर्क का अर्थ है - ऊह अर्थात् चित्त किसी भी प्रालम्बन को आधार बनाकर सर्वप्रथम उसमें प्रवेश करे, उसे 'वितर्क' कहते हैं श्रीर जब चित्त उसी श्रालम्बन में गहराई से उतरकर उसमें एकरस हो जाता है, तब उसे 'विचार' कहते हैं । इस तरह श्रालम्बन में चिस की प्रथम प्रवस्था को 'वितर्क' और उसके बाद 'विचार' कहते हैं ।
स्थिर होने वाले
की प्रवस्था को
जैन परम्परा में वितर्क का अर्थ है - श्रुत या शास्त्र ज्ञान, श्रीर विचार का अर्थ है - एक विषय से दूसरे विषय में संक्रमण करना । योग-सूत्र में प्रयुक्त सवितर्क समापत्ति का अर्थ - विकल्प भी किया गया है । विकल्प का तात्पर्य है - शब्द, अर्थ और ज्ञान में भेद होते हुए भी उसमें अभेद बुद्धि होती है । और निर्वितर्क समापत्ति में ऐसी प्रभेद बुद्धि नहीं होती है, वहाँ केवल अर्थ का शुद्ध बोध होता है । प्रायः ये ही भाव जैन परम्परा में प्रयुक्त पृथक्त्व-वितर्क और एकत्व - वितर्क में परिलक्षित होते हैं। प्रथम ध्यान में विचार संक्रमण को प्रवकाश है, परन्तु द्वितीय पान में उसे स्थान नहीं दिया है, जबकि वितर्क को स्थान दिया गया है ।
·
बौद्ध परम्परा द्वारा वर्णित ध्यानों में भी यह क्रम परिलक्षित होता - इसके प्रथम ध्यान में वितर्क प्रोर विचार - दोनों रहते हैं, परन्तु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org