________________
पंचम प्रकाश
१७९
यदि बीस दिन तक एक ही सूर्य नासिका में पवन चलता रहे, तो एक सौ अस्सी दिन में निश्चित रूप से मृत्यु होती है ।
एक द्वि- त्रिचतुः पञ्च दिनषट्क-क्रम-क्षयात् । एकविंशादि पञ्चाहान्यत्र शोध्यानि तद्यथा ॥ १०८ ॥
यदि इक्कीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पच्चीस दिन तक एक सूर्य - नाड़ी में ही पवन बहता रहे, तो पूर्वोक्त १८० दिनों में से क्रमशः एक, दो, तीन, चार, पाँच षट्क कम करते रहना चाहिए । इसका स्पष्टी करण आगे किया गया है |
एकविंशत्यहं त्वर्क- नाडी वाहिनि मारुते ।
चतुःसप्तति संयुक्ते मृत्युदिनशते भवेत् ॥ १०६ ॥
यदि पौष्ण-काल में इक्कीस दिवस पर्यन्त सूर्य - नाड़ी में पवन बहता रहे, तो पूर्वात १८० दिन में से एक षट्क कम करने पर, अर्थात् १८०–६=१७४ दिन में उसकी मृत्यु होती है ।
द्वाविंशति-दिनान्येवं स द्वि-षष्टावहः शते ।
षड्दिनोनैः पञ्चमासैस्त्रयोविंशत्यहानुगे ।। ११० ॥
पूर्वोक्त प्रकार से बाईस दिन तक पबन चलता रहे, तो १७४ दिनों में से दो षट्क प्रर्थात् बारह दिन कम करने से १७४-१२ = १६२ दिन तक जीवित रहेगा । यदि तेईस दिन तक उसी प्रकार पवन चलता रहे, तो १६२ दिनों में से तीन षट्क अर्थात् अठारह दिन कम करने से छह दिन कम पाँच महीने में प्रर्थात् ९६२-१८ = १४४ दिनों में मृत्यु होती है ।
Jain Education International
तथैव बायो वहति चतुर्विंशतिवासरीम् । विंशत्यभ्यधिके मृत्युर्भवेद्दिनशते गत्ते ॥ १११ ॥
• पूर्वोक्त प्रकार से चौबीस दिन तक वायु चलता रहे, तो एक सौ बीस दिन बीतने पर मृत्यु हो जाती है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org