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पंचम प्रकाश
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पीठ करके और पश्चिम में मुख करके बैठना चाहिए और अपनी या दूसरे की आयु का निर्णय करने के लिए अपनी छाया को देखना चाहिए।
यदि छाया पूर्ण दिखाई दे तो समझना चाहिए कि एक वर्ष तक मृत्यु नहीं होगी और नीरोगता के साथ सुखपूर्वक वर्ष व्यतीत होगा। यदि अपना कान दिखाई न दे तो बारह वर्ष में मृत्यु होगी। हाथ न दीखे तो दस वर्ष में मरण होगा । अंगुलियाँ न. दीखें तो आठ वर्ष में, कंधा न दीखे तो सात वर्ष में, केश न दीखें तो पाँच वर्ष में, पार्श्व भाग न दीखें तो तीन वर्ष में, नाक न दीखे तो एक वर्ष में, मस्तक या ठोड़ी न दीखे तो छह महीने में, ग्रीवा न दीखे तो एक महीने में, नेत्र न दीखें तो ग्यारह दिन में और हृदय में छिद्र दिखाई दें, तो सात दिन में मृत्यु होगी। और यदि दो छायाएं दिखाई दें, तो समझना चाहिए कि मृत्यु पास ही आ पहुंची है। विद्या-प्रयोग से काल-निर्णय
इति यन्त्र प्रयोगेण जानीयात्कालनिर्णयम् ।
यदि वा विद्यया विद्याद्वक्ष्यमाणप्रकारया ।। २१६ ।। पूर्वोक्त रीति से यन्त्र का प्रयोग करके आयु का निर्णय करना चाहिए अथवा आगे कही जाने वाली विद्या से काल का निर्णय कर लेना चाहिए।
प्रथमं न्यस्य चूडायां स्वाशब्दमों च मस्तके ।
क्षि नेत्र-हृदये पञ्च नाभ्यब्जे हाक्षरं ततः ।। २१७ ॥ __ सर्वप्रथम चोटी में 'स्वा' शब्द, मस्तक पर 'ॐ' शब्द, नेत्र में 'क्ष' शब्द, हृदय में 'प' शब्द और नाभि-कमल में 'हा' शब्द स्थापित करना चाहिए।
अनया विद्ययाऽष्टाग्र - शतवारं विलोचने । ... स्वच्छायां चाभिमन्त्र्याङ पृष्ठे कृत्वाऽरुणोदये।। २१८ ।।
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