Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

View full book text
Previous | Next

Page 352
________________ २६२ योग-शाम - वे यहाँ अत्युत्तम वंश में जन्म लेते हैं और उनका कोई मनोरथ कभी खण्डित नहीं होता। वे नित्य उत्सव के कारण मनोरम भोगों का उपभोग करते हैं। . ___ तत्पश्चात् विवेक का आश्रय लेकर, समस्त सांसारिक भोगों से विरक्त होकर और ध्यान के द्वारा समस्त कर्मों का ध्वंस करके अव्यय पद अथवा निर्वाण पद को प्राप्त करते हैं । टिप्पण-धर्म-ध्यान का पारिलौकिक फल देवलोक का प्राप्त होना जो बतलाया गया है, वह ऐसे योगियों की अपेक्षा से ही बतलाया गया है जिन्होंने ध्यान की पराकाष्ठा प्राप्त नहीं की और इस कारण जो अपने पुण्य-कर्मों का क्षय नहीं कर पाए हैं। ध्यान की पराकाष्ठा पर पहुंचने वाले योगी उसी भव से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं । For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386