Book Title: Yogshastra
Author(s): Samdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
Publisher: Rushabhchandra Johari

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Page 370
________________ जो साधक विश्व के समस्त प्राणियों को अपनी आत्मा के समान देखता है, सब पदार्थों में समभाव रखता है और प्रसव का त्यागी है, उसके पाप कम का बन्ध नहीं होता है । - भगवान महावीर शुभ प्रध्यवसाय एवं चिन्तन-मनन से मन शुद्ध होता है, निरवद्य - fromruta भाषा का प्रयोग करने से वचन योग की शुद्धि होती है। और निर्दोष क्रिया का श्राचरण करने से शरीर संशुद्ध होता है। वस्तुतः त्रि-योग की शुद्धि ही योग-साधना की सिद्धि-सफलता है । - प्राचार्य हरिभद्र जो योगी - साधक ज्ञान और चारित्र के मूलरूप सत्य का प्रयोग करता है, उसकी चरण-रज से पृथ्वी पवित्र होती है । - श्राचार्य हेमचन्द्र सदाचार योग की प्रथम भूमिका है। विचार और प्राचार की शुद्धि का नाम सदाचार है । - मुनि समदर्शी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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