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योग-शास्त्र
... यदि एक मंडल से दूसरे मंडल में जाता हुआ पुरन्दरादि वायु ज़ब भली-भाँति ज्ञात न हो-तब पीले, श्वेत, लाल, और काले बिन्दुओं से उसका निश्चय करना चाहिए। बिन्दु देखने को विधि
अंगुष्ठाभ्यां श्रुती मध्यांगुलीभ्यां नासिकापुटे। ... अन्त्योपान्त्यांगुलीभिश्च पिधाय वदनाम्बुजम् ॥ २४६ ।। कोणावक्ष्णोनिपोड्याद्यांगुलीभ्यां श्वासरोधतः।
यथावणं निरीक्षेत बिन्दुमव्यग्र-मानसः ॥ २५० ।। दोनों अंगूठों से कान के दोनों छिद्र, मध्य ‘अंगुलियों से नासिका के दोनों छिद्र, अनामिका और कनिष्ठा अंगुलियों से मुख और तर्जनी अंगुलियों से आँख के कोने दबाकर, श्वासोच्छवास को रोक कर, शान्त चित्त से भ्रकुटि में जिस वर्ण के बिन्दु दिखाई दें, उन्हें देखना चाहिए। बिन्दु-ज्ञान से पवन-निर्णय
पीतेन बिन्दुना भौमं सितेन वरुणं पुनः । । कृष्णेन पवनं विन्द्यादरुणेन हुताशनम् ॥ २५१ ॥
पीला बिन्दु दिखाई दे तो पुरन्दर वायु, श्वेत दिखाई दे तो वरुण वायु, कृष्ण बिन्दु परिलक्षित हो तो पवन नामक वायु और लाल बिन्दु दृष्टिगोचर हो तो अग्नि वायु समझनी चाहिए। नाड़ी की गति को रोकना
निरुरुत्सेद् वहन्तीं यां वामां वा दक्षिणामथ ।
तदंगं पोडयेत्सद्यो यथा नाडीतरा वहेत् ॥ २५२ ।। चलती हुई बांयीं या दाहिनी नाड़ी को रोकने की इच्छा हो तो उस और के पार्श्व भाग को दबाना चाहिए। ऐसा करने से दूसरी नाड़ी चालू हो जाएगी और चालू नाड़ी बन्द हो जाएंगी। इस तरह की क्रिया करने से नाड़ी की गति में परिवर्तन प्रा जाएगा।
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